कुमाउनी पत्रकारिता का इतिहास History of kumauni journalism
■ ललित तुलेरा
tulera.lalit@gmail.com
कुमाउनीक लै हौर भाषानकि चारि पत्रकारिताक आपण इतिहास छु। हालांकि कुमाउनीक खुद आपण पछिल करीब एक हजार सालोंक इतिहास छु पर पत्रकारिताक शुरूवात कुमाउनी में आज बै सिरफ आठ दशक पैंली हैछ। कुमाउनी में यै है पैंली कुमाऊं बै निकलणी साप्ताहिक अखबारों में क्वे बा्ंज कविता, गीत, किस्स छपी करछी। कुमाउनी में बिधिवत पत्रकारिताकि शुरूवात अल्माड़ नगर बै ‘अचल’ मासिक पत्रिका दगाड़ भैछ। य पत्रिकाक पैंल अंक फरवरी 1938 में निकलौ। जीवन चंद्र जोशी (24 अगस्त 1901- 30 अप्रैल 1980) य पत्रिकाक संपादक छी। उनार दगाड़ संपादनक काम में तारादत्त पांडे और धर्मानंद पंत लै छी।
जब कुमाऊं अंचल बै यांकि लोकभाषा और एक जमान में राजभाषा में यस सार्थक काम हुणौछी तब ‘अचल’ पत्रिका लिजी बिख्यात रचनाकार रवीन्द्रनाथ टैगोर और रूसी कलाकार निकोलस रोरिक ल शुभकामना संदेश भेजी और ऊ ‘अचल’ में छपी। रवीन्द्रनाथ टैगोर ज्यूल लेखौ- ‘‘ऐसी पत्र-पत्रिकाओं की बहुत आवश्यकता है जो भारतवर्ष के विशाल अंचल में फैली हुई नाना प्रकार की उपयोगी परंपराओं और विभिन्न स्थानीय संस्कृतियों को लोप होने से बचा सके, क्योंकि हम उन्हीं की पृष्ठभूमि पर अपनी नवीन संस्कृति का निर्माण कर सकते हैं। मुझे यह जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई है कि इस प्रकार का कार्य करने के लिए पार्वत्य प्रदेश से ‘अचल’ प्रकाशित होने जा रहा है।’’
पत्रिकाक शुरूवाती तीन अंक (फरवरी, मार्च, अप्रैल 1938) लाला बाजार अल्माड़ा बै प्रबंध संपादक- धर्मानंद पंत और लाला बजाराकै मदनमोहन अग्रवालक निगरानी में ‘इंद्र प्रिंटिंग वर्क्स’ प्रैस बै छपी। वीक बाद अघिलाक अंक नैनीतालक ‘किंग प्रेस’ बै देवीदत्त पांडेक देखरेख में छपी। य पत्रिका 35-40 पेजकि छी जैक एक अंककि कीमत चार आ्न छी और सालाना द्वी रूपैं बार आ्न छी।
‘अचल’ पत्रिका तिसर अंक (अप्रैल 1938) में प्रसिद्ध कवि सुमित्रानंदन पंत ज्यूकि आपणि मातृभाषा कुमाउनी में लेखी एकमात्र कविता ‘बुरांश’- ‘सार जंगल में त्वि ज क्वे न्हां रे क्वे न्हां’ लै छपै। य कविता जीवन चंद्र जोशी ज्यूल उनूकैं चिट्ठी लेखि बेर मंगवाछी। ‘अचल’ ल कुमाउनी बिकास में और समाज कैं आपण भाषा प्रति जागरूक करणक काम बखूबी करौ। उ बखत में इमें कुमाउनी में कविता, कहानि, लेख, समालोचना, कहावत, आ्ण समेत कएक जरूरी सामग्री छपी। ‘अचल’ पत्रिकाकै माध्यमल हमूकैं कुमाउनी में पैंल बार छपी कएक रचनाओंक पत्त चलों जो शोध में हमरि भौत मधत करनी। ‘अचल’ पत्रिकाल कुमाउनी कैं महिला रचनाकार लै देई। जनूमें जयंती पांडे ( अंक-1 में ‘गृहणी’ नामल लेख, अंक-3 में ‘जूं हो’ लोक का्थ, अंक-7 में ‘भै भुखी’ का्थ, राधिका बौज्यू राधि बुलै दे, कहानि, संयुक्तांक- दिसंबर-जनवरी 1940), पार्वती उप्रेती (अंक-2 में ‘ब्रजराज आपूं डरि गे’, ‘को छै’ कविता, लेख-अंक- 12 , अंक-सितंबर-1939), गद्य गीत-'जरा हमर लै सुण'), बसंती देवी पंत (अंक-5, 7 में कुमाउनी कहावत, का्थ), हेमा देवी (वार्तालाप गद्य, अंक-8), भारती देवी (अंक-12), लक्ष्मी देवी (अंक- जुलाई 1939 गद्य गीत), लीलावती देवी (आरोग्य सूत्र) महिला रचनाकार छपी।
‘अचल’ ठीकै चलनौछी पर तबै दुसर विश्व युद्ध (1939-1945) लै शुरू है गोय। या्स मुसकिल हालितों में पत्रिका प्रकाशन बड़ कठिल छी। युद्धक कारण या्स बिकट हालित पैद भई की स्याई, कागज भौत महंग है गोछी और मिलण लै मुसकिल है गोछी। द्वी सालोंक भितर य पत्रिकाक कुल 21 अंक निकल सकी। जनूमें अंक 13 (फरवरी मार्च 1939) और अंक 20 (अक्टूबर-नवंबर 1939) संयुक्तांक रूप में निकली और आंखिरी अंक 21- (दिसंबर 1939- जनवरी 1940) निकलौ।
जो काम हौस, उछास और सेवा भावल शुरू करी जै रौछी उ आंखिरी अंक (दिसंबर 1939-जनवरी 1940) बाद बंद करण पड़ौ। आंखिरी अंकक संपादकीय में संपादक जीवन चंद्र जोशी ज्यूल लेखौ- ‘‘यै पत्र को दुसरो वर्ष समाप्त हूनो छ। अघिल कै यैको प्रकाशन संभव नी मालूम पड़नो, युद्ध का कारण कागज, स्याही इत्यादि का मूल्य में काफी तेजी आई गई छ। और अनतिदूर भविष्य में यै परिस्थिति में के बदलाव हूणा का लक्षण नी प्रतीत हूना। प्रत्युत यो आशंका छ कि छपाई का सामान की कीमत दिन है दिन और लग बढ़नी जाली। यसी हालत में हम लै योई ठीक समझो छ कि फिलहाल ‘अचल’ को प्रकाशन स्थगित करी जां। युद्ध की समाप्ति हूणा पर यदि संभव भयो त यै कन भला परिवर्दि्धत परिवर्तित रूप में निकालण की चेष्टा करूंला।’’
युद्धक बाद उ दिन कभै नि आय कि फिर यैक क्वे लै अंक निकलि सको। यैक बाद 38 सालक लंब अंतराल में कुमाउनी में क्वे पत्र-पत्रिका नि छप। इतुक लंब सुनसानी बाद अप्रैल 1977 में अल्माड़ में साहित्यकार सुधीर शाह (15 अगस्त 1952-16 दिसंबर 2013) ज्यूक संपादन में हस्तलिखित साइक्लोस्टाइल पत्रिका निकालणकि योजना बणै। जमें पैंल अंक ‘बा्स रे कफुवा’ नामल निकाली गोछी। य काम में साहित्यकार राजेन्द्र बोरा (आ्ब त्रिभुवन गिरि) संयोजक, सह संयोजक- हयात सिंह रावत, रेखांकन- अशोक नयाल, दया जोशी और अशोक बिष्ट छी। यैक य पुर अंक सिरफ पद्य कैं समर्पित छी। जमें चार महिला रचनाकार समेत कुल 27 रचनाकार छपी। यई क्रम में यैक अघिल साल 1978 में ‘धार में दिन’ नामल छपौ। अप्रैल 1979 में ‘रत्तै ब्याल’ छपौ। य अंक में पुराण रचनाकार- गुमानी पंत, गौरी दत्त पांडे ‘गौर्दा’, श्यामाचरणदत्त पंत, चंद्रलाल वर्मा, ब्रजेन्द्र लाल साह समेत आधुनिक युगाक कुल 22 रचनाकारोंकि कविता छपी। य पत्रिका साइक्लोस्टाइल में निकाली जांछी। यैक कीमत 1.50 ढेपू छी, जमें करीब 30 पेज हुंछी।
तीन साल तक हर साल एक अंक निकाली जाणक बाद य पत्रिका बंद है गेछी। संपादक सुधीर शाह ज्यूल आंखिरी अंक (अप्रैल 1979) संपादकीय में लेखौ- ‘‘लागण लागो कि ‘धार में दिन’ बटी जो ‘कफू बा्स’ नौछी ऊ ‘रत्तै-ब्याल’ बाद आ्ब शायदै बासल। ‘बा्स रे कफुवा’ बटी ग्वै लगूणी हाथनल ‘अचल’ क 38 बरस बाद एक शुरूआत हैछी, पर लगातार द्वी बरस बटि जोत-जुगाव-बुधाण और सबर कर ले यई लागो कि आपण बोलीम, आपण कला- साहित्य और संस्कृति की जा्ग और जागक ‘टीस’ दगै नी जुड़ई सकन-नी जोड़ी सकन, किलैकी अपणयाट न्हैतिन।’’
यैक 11 साल बाद 27 मार्च 1990 क दिन छी जब यसै किस्मक ‘ब्याण ता्र’ नामक हस्तलिखित साइक्लोस्टाइल फोल्डर पत्रिकाक बिमोचन करी गो। य पत्रिका अल्माड़ नगराक साहित्यकार अनिल भोज (25 जून 1955- 01 जनवरी 2021) और दीपक कार्की ज्यूल मिल बेर निकालौ। य पुर पत्रिका हातल लेखि बेर तैयार करी जांछी, दगाड़ै क्वे जरूड़ी फोटो लै चिपकाई जांछी और डुबलीकेट करि बेर कएक अंक तैयार करी जांछी, य पत्रिका एक साल (बार अंक) तक फोल्डर रूप में छपै।
यैक दुसर सालक पैंल अंक (अंक-13) पत्रिकाक रूप में छपौ। और यैक अंक 14-24 तक इग्यार अंक संयुक्तांक छपी। यैक बाद तिसर साल में अंक-1-4 तक संयुक्तांक छपी। यैक सिरफ 15 अंक निकलि सकी। आर्थिक कारणोंल यैक प्रकाशन बंद करण पड़ौ। य पत्रिका में गद्य-पद्य में रचना छपी। लाला बाजार अल्मोड़ा बै निकलणी य पत्रिकाक पाठक संख्या करीब 200 है सकर छी।
पैंल बार कुमाऊं बै भ्यार लखनऊ बठे जनवरी 1993 में नामी कुमाउनी साहित्यकार बंशीधर पाठक ‘जिज्ञासु’ ज्यूक प्रयासोंल ‘आँखर’ पत्रिकाक शुरूवात भै। यैक शुरूवाती चार अंक (जनवरी- अप्रैल 1993) संपादक नवीन चंद्र जोशी छी। य पत्रिकाक शुरूवाती दस अंक (जनवरी-अक्टूबर 1993) मासिक निकली। यैक बाद य पत्रिका तिमाही निकलै। य पत्रिकाल कुमाउनी साहित्य कैं अघिल बढूनक ठुल काम करौ। जमें साहित्याक कएक बिधाओं में रचना छपी। य पत्रिका में कुछेक रचना गढ़वाली में लै छपी। यैक आंखिरी अंक (अगस्त, सितंबर, अक्टूबर 1995) निकलौ। यैक बंद हुणक कारण आंखिरी अंकक संपादकीय में लेखि रौ-‘‘निश्चित रूप में हमरि समापन किश्त छ। हिसालु-किलमाडु खाण में कान त बुड़नेरै भै, सो हमन कैं लै बुड़ी। क्वे हद तक हमूल काननै पीड़ सहौ, लेकिन आब हमरि तड़ि में उ तराण नि रै कि हम लगातार यो पीड़ कैं सहते रौं। जनार लिजी हमूल हिसालु-किलमाडु टिपी उनन कैं आब इनर स्वाद पसंद न्हां। किलैकि उनरि जिबड़ि में बिलैंति मिठैक स्वाद रचि-बसि गो।’’
(०२)
'बुराँश' पत्रिकाक कबर
यैक बाद अक्टूबर 1995 में ‘बुराँस’ नामक फोल्डर तिमाही पत्रिकाक शुरूवात भै। य फोल्डर पत्रिका उदयपुर, राजस्थान बै डाॅ. जीवन खरकवाल और उनार दगड़ी हरिहर पांडे, डी.डी. शर्मा, दिनेश पुरोहित आदिक ‘बुरांश टीम’ द्वारा प्रकाशित भै। यैक सालाना कीमत 30 रूपैं छी। य फोल्डर पत्रिका में कुमाउनी में पद्य, गद्य में रचना छपी। कुछेक रचना गढ़वाली में लै छपी। य पत्रक द्वी संयुक्त अंक (सितंबर- नवंबर 1998 और जनवरी-मार्च 1999) ‘आण विशेषांक’ रूप में निकालौ, जमें करीब ढाई सौ है सकर आ्ण (पहेली) एकबटयाई छन। य पत्रिका लै पांच साल बाद अप्रैल 2000 में बंद है गेछी किलैकी पत्रिकाक संपादक डाॅ. जीवन खरकवाल ज्यू कैं जापान सरकारक न्यूत पर अकादमिक कामक लिजी वां जाण पड़ौ।
यई साल जनवरी 2000 ई. बै ‘दुदबोलि’ नामल कुमाउनी साहित्यकार मथुरादत्त मठपाल (29 जून 1941-09 मई 2021) ज्यूल रामनगर (नैनीताल) बै त्रैमासिक पत्रिकाक प्रकाशन शुरू करौ। य पत्रिका दिसंबर 2005 तक त्रैमासिक निकलनै रै जो करीब 50-60 पेजकि छी और कीमत छी 25 रूपैं। य पत्रिका कैं टाइप करि बेर प्रिंट आउट निकाली जांछी और फिर स्यूड़-धागल सिण बेर यकैं मठपाल ज्यू आपण घर में तैयार करछी। यकैं 2006 बै सालना निकाली जाणकि योजना बणाई गे। वार्षिक पत्रिका बणि जाण पर य करीब 300 है सकर पेजकि पत्रिका बणि गेछी और कीमत शुरूवात में 150 और बादाक सालों में 250 रूपैं तक छी। य पत्रिकाल कुमाउनीक बिकास में शानदार योगदान दे। कुमाउनी में पुरा्ण रचनाकारों कैं लै सामणि ल्यौणक प्रयास बखूबी करी गो, दगाड़ै यमें छुटपुट गढ़वाली और नेपाली में लै रचना छापी गईं।
'दुदबोलि' वार्षिक पत्रिका कबर
य पत्रिकाक उरातार सालाना 2006 बै 2013 तक 8 अंक निकाली गई। मठपाल ज्यूक तबियत खराब हुणा कारण यकैं फिर कुछ सालोंक लिजी स्थगित करी गो, मई 2021 में उनर देहांत बाद लै य पत्रिकाक 9 ऊं अंक 2022 में उनर च्यल नवेंदु मठपाल ज्यूक परयासोंल रामनगर महाविद्यालय में हिंदी प्रोफेसर डाॅ. गिरीशचंद्र पंत ज्यूक संपादन में उनूकैं समर्पित निकाली गो। आ्ब य पत्रिका कैं प्रकाशनक जिमवारी दिल्ली में नवगठित ‘कुमाउनी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति समिति’ संस्थाल ल्हि रौ जमें उनूल यैक त्रैमासिक अंक जुलाई-सितंबर 2023 निकालि रौ।
इथां जनवरी 2004 में ‘धाद’ नामकि एक पत्रिका देखण में ऐ। य पत्रिका गढ़वालकि सामाजिक संस्था ‘धाद’ ओर बै कुमाउनी भाषाक बिकासक लिजी निकाली जाणक प्रयास छी पर य पत्रिकाक दुसर अंक नि निकल। पी.सी. तिवारी ज्यूक प्रयासोंल अल्माड़ नगर बै निकली य पत्रिकाक संपादन डाॅ. हयात सिह रावत ज्यूल करौ। य 80 पेजक अंक में कुमाउनी गद्य-पद्य विधाओं में करीब 50 रचनाकार छपी।
कुमाउनी पत्रकारिता में नई क्रांति ऐ जब नवंबर 2008 बै डाॅ. हयात सिंह रावत ज्यू और उनार दगड़ियोंक परयासोंल ‘पहरू’ मासिक पत्रिकाक शुरूवात करी गे। ऐल तक कुमाउनी में पत्र-पत्रिकाओंक पहुंच सिरफ लेखक बिरादरी तकै सिमटी छी। आम जनता तक य साहित्य कैं पुजूणै लिजी और कुमाउनी भाषा और साहित्यक बिकासै लिजी इकैं एक मुहिमक रूप दिई गो। जां पैंली सिरफ कुछेक लेखवार लेखी करछी वांई आ्ब कएक नई लेखवार सामणि औण लागी और कुमाउनी साहित्य में गद्य और पद्य बिधाओंक बिकासक लिजी हर बिधा में लेखन पुरस्कार योजना चलाई जाण लागी, हर बिधा में किताब छापणकि योजना बणाई जाण लागी। हर साल तीन दिनी ‘राष्ट्रीय कुमाउनी भाषा सम्मेलन’ करी जाण लागी, जां कुमाउनी लेखारों कैं, भाषाक बिकास में काम करनेर भाषाप्रेमियों कैं भाषाक बिकास में योगदानै लिजी सम्मानित करी जाण लागौ और तीन दिन तक बिचार-बिमर्श करी जाणक मंच तैयार करी गो।
40 पेजकि यो पत्रिका 2004 में गठित ‘कुमाउनी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति प्रचार समिति’ कसारदेवी अल्मोड़ा ओर बै नवंबर 2008 बै पछिल 15 सालों बै हर महैण प्रकाशित हुण लागि रै। ‘पहरू’ में आज तक 850 है सकर लेखार छपि गई। देश और बिदेशों में ई. फ्लिप (डिजिटल अंक) रूप में लै कुमाउनी समाज में यो पत्रिका पढ़ी जाण लागि रै।
कुमाउनी पत्रकारिताक इतिहास में एक नई मोड़ तब आ, जब 25 जुलाई 2011 हुं अल्मोड़ा नगर बै ‘कुर्मांचल अखबार’ क पैंल अंक प्रकाशित भौ। यैक संपादक डाॅ. चंद्रप्रकाश फुलोरिया ज्यूल कुमाउनीक पैंल साप्ताहिक अखबारक प्रकाशनक दगाड़ कुमाउनीक पत्रकारिता में एक नई अध्याय जोड़ौ। इमें कुमाउनी में पहाड़, देश-बिदेशाक खबरों दगाड़ै कुमाउनी में कविता, लेख आदि छपनी।
चार पेजक य अखबार में ‘हमरि तुमरि चिट्ठी’, ‘दिल्ली बै चिट्ठी ऐरै’, ‘पातड़’, ‘गौं-शहरौंकि हलचल’ कुछ स्तंभ छन। य अखबार पछिल 12 सालों बै उरातार हर हफ्त सोमबारक दिन छपण लागि रौ।
उत्तराखंडाक भाषाओं कैं सँवारणक मकसदल ‘कुमगढ़’ नामकि मासिक पत्रिका प्रकाशक व संपादक दामोदर जोशी ‘देवांशु’ ज्यूल मई 2014 में पैंल अंक निकालौ। य पत्रिका हल्द्वाणि बै द्वी महैणकि संयुक्तांक रूप में निकलैं। य पत्रिका में कुमाउनी, गढ़वाली, जौनसारी, रवांल्टी आदि भाषान में साहित्याक कएक विधाओं में रचना छपनी। य पत्रिका मई 2014 बटी ऐल तलक उत्तराखंडाक लोक भाषाओंक बिकास में योगदान दिण लागि रै।
'कुमगढ़' पत्रिका कबर
कुमाउनी पत्रकारिता में य एक नई परयास देखण में आ जब पिथौरागढ़ निवासी महिला संपादक डाॅ. सरस्वती कोहली ज्यूल ‘आदलि-कुशलि’ मासिक पत्रिकाक प्रकाशन शुरू करौ। य पत्रिकाक पैंल अंक जुलाई 2017 में निकलौ। शुरूवात में य पत्रिका में कुमाउनी में रचना छपी करछी, आ्ब गढ़वाली और नेपाली रचनाओं कैं लै जाग दिई जाणौछ। पिथौरागढ़ नगर बै छपणी 28 पेजकि य पत्रिका हर महैण पछिल छै साल बै आजि तलक साहित्यकि सेवा में जुटी छु।
'आदलि-कुशलि' पत्रिकाक कबर
य पत्रिका लै भाषा बिकासै लिजी लेखन प्रतियोगिता चलै बेर और सालाना सम्मेलन करि बेर नई जोश दिलूणक काम करनै।
जनवरी 2022 में कुमाउनी में पैंल बार नई तकनीकक इस्तमाल करि बेर पैंल मासिक ई पत्रिका ‘प्यौलि’ नामलि निकालणक परयास करी गो।
य पत्रिका पिथौरागढ़ जिल्लक बड़ालू गौंक युवा रचनाकार डाॅ. पवनेश ठकुराठी द्वारा निकाली गे और ऊं खुद यैक संपादक छी। य ई. पत्रिका कैं ऊं आपण खुदकि एक वेबसाइड में पीडीएफ बणै बेर अपलोड करछी। उनूल य परयास कैं पांच अंक (जनवरी 2020 - मई 2020) जारी धरौ पर यैक बाद य पत्रिका बंद करि दे। य पत्रिकाक पैंल अंक (जनवरी 2020) में 11 युवा रचनाकारोंक कविता छपी। दुसर अंक (फरवरी 2020) ‘पर्यावरण बिशेषांक’ रूप में निकालौ और आंखरी अंक (मई 2020) दुनी भर में फैली कोरोना महामारी पर कुछ गद्य और पद्य में रचना छापी।
ऐल कुमाउनी पत्रकारिता में साहित्य पत्रकारिताक प्रमुखता छु। य सुखद छु कि कुमाउनी में लै पत्र-पत्रिकाओंक चलन आजि लै ज्यून छु। ऐल कुमाउनी में पत्रकारिता कएक पत्र-पत्रिकाओंक माध्यमल हुण लागि रै। पर क्वे लै क्षेत्रीय और लोक भाषा में पत्रकारिता आसान लै नि हुनि फिर उ आजक बदलती तकनीकक जमान में। कुमाउनी पत्रकारिताक सामणि लै कएक चुनौती छन। यकैं आजि कएक नई माध्यमोंक सहारल भौत अघिल बढन छु किलैकी य आजि सीमित माध्यमों दगाड़ै सीमित छु। जमें डिजिटल शुरूवात एक नई परयास होल, नई पीढ़ी कें आपणि मातृभाषा और भल समाज निर्माणक प्रति जागरूक करण लै कुमाउनी पत्रकारिताकि ठुलि उपलब्धि होलि। History of kumauni journalism ●●●
भौत भलि और ज्ञान वर्धक लेख लिख और आपुल, 👌🙏
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