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कुमाउनी युवाओंक 'उज्याव' संगठनक पैंल वर्चुअल गोष्ठी उरयाई गे। युवाओल कविता लै सुणाई

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  अल्माड़ ।   ललित तुलेरा कुमाउनी युवा लै आपणि मातृभाषा 'कुमाउनी' कैं बचूण और वीक बिकासै लिजी अघिल औनई। 'उज्याव' संगठनक सदस्योंल आपुण मासिक गोष्ठी ३० जनवरी २०२२ हुं उरया। य गोष्ठी संगठनक पैंल वर्चुवल गोष्ठी छी जो गूगल मीट में ब्यालकार सात बाजी बै शुरू भै। गोष्ठी में युवाओंल कुमाउनी भाषा, साहित्य पर बातचीत करै दगाड़ै 'उज्याव' संगठनक भविष्य में करी जाणी कामों बार में लै चर्चा करै। गोष्ठी में युवा कलमकारोंल आपणि कुमाउनी कविता लै सुणाई। कार्यक्रमक संचालन संगठन संयोजक दीपक सिंह भाकुनी द्वारा करी गो। •  कि छु 'उज्याव' ? ' उज्याव '  कुमाउनी, भाषा साहित्य व संस्कृतिक बिकास में कुमाउनी युवा पीढ़ीक (३० साल  तक) योगदानै लिजी कुमाउनी युवाओं परयासोंल शुरू करी एक पहल छु, जां उ आपणि पछयाण, आपणि दुदबोलिक सज-समावै लिजी एक ह्वाल। य पहल द्वारा युवा आपणि मातृभाषा कुमाउनी दगै जुड़ाल। 'उज्याव' एक परयास छु कुमाउनी युवा पीढ़ी कैं भाषा, साहित्य दगै मोह पैद करण, कुमाउनी कैं समाज में लोकप्रिय बणूनक। य संगठनक गठन बागेश्वर में हई तीन दिनी  'राष्ट्रीय कुमाउनी भाषा...

कुमाउनी साहित्य में सामूहिक काव्य संकलनों का क्या है इतिहास?

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  ललित तुलेरा बागेश्वर (उत्तराखंड) वट्सऐप- 7055574602 ••• • यह लेख ललित तुलेरा द्वारा संकलित व संपादित कुमाउनी के युवा रचनाकारों का सामूहिक कविता संकलन 'जो य गड. बगि रै' से यहां उद्धृत है।           गु मानी ज्यूक कलमक टुक बै कुमाउनी में साहित्यकि जो छ्वय फुटौ उ माठू-मा्ठ गङ बणनै गै, द्वी सौ बरसों बटी कुमाउनी साहित्यकि ‘जो य गङ बगि रै’ उ कुमाउनीक कतुकै लेखवारोंकि कलम साधनाक बल पर बगनै, बगनै बस बगते जाणै। कुमाउनी में साहित्यकि गङ आज तलक उरातार बगनै जाणै, कुमाउनी समाज में कुछेक चिताव साहित्यपरेमी, भाषापरेमी और आपुणि मातृभाषाक कदर करणी लेखवारोंल इमें साहित्य परंपरा कैं ज्यून धरण और कुमाउनी भाषा/साहित्य कैं अघिल बढूणै लिजी चैबिसूं घड़ी सोचै-बिचारौ और आपण ख्वर खपा, बिन लोभ-लालसाक ऊं लौलीन रई। उनर हिय में एक कदर छी भाषाक और आ्ग छी आपणि भाषाक बिकासक उमें साहित्य कैं रचणक, दुनी कैं आपणि चीजकि सामर्थ देखूणकि, आपणि पछयाण और बिरासत कैं बचूणकि।  उसिक त कुमाउनी में साहित्य रचना कैं बरकरार धरण उतुक सितिल न्हैंती जो पिछाड़ि सैकड़ों सालन बटी उरातार होते उणै फिर लै इमें...

पहाड़ी जिला बागेश्वर के सलखन्यारी गांव में 'तुलेरा' कहां से आए ?

                                                     ललित तुलेरा बागेश्वर (उत्तराखंड) ई मेल- tulera.lalit@gmail.com •••         मा नवीय स्वभाव घुमंतु रहा है। इसके प्रमाण हमें इतिहास कें पन्नों में मिल जाते हैं। कुछ मानव पृथ्वी के एक भूभाग से हजारों किलोमीटर की पैदल यात्रा करके दूसरे भूभाग में बसे हैं तो कुछ सिर्फ कुछ किलोमीटर के फासले में। इन पलायनों के कतिपय कारण रहे हैं। इधर सवाल है ‘तुलेरा’ सलखन्यारी (बागेश्वर) में कहा से?   इस सवाल का जबाब तथ्यों व प्रमाण के आधार पर दे पाना बेहद मुश्किल है, क्योंकि शायद ही इसका कोई प्रमाण उपलब्ध है। इस संबधं में गांव के बुजुर्गों के पास यही एक किस्सा है-  उत्तराखंड राज्य के वर्तमान गढ़वाल मंडल के चमोली जिले में उलंग्रा नामक गांव में दो भाई रहते थे। उनकी उम्र अभी बहुत अधिक न थी। दोनों अभी नौजवान थे। एक दिन दोनों का आपस में विवाद हो गया। मामला झगड़ा तक बढ़ गया और एक भाई ने दूसरे को ग...