कुमाउनी साहित्य में सामूहिक काव्य संकलनों का क्या है इतिहास?
ललित तुलेरा
बागेश्वर (उत्तराखंड)
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• यह लेख ललित तुलेरा द्वारा संकलित व संपादित कुमाउनी के युवा रचनाकारों का सामूहिक कविता संकलन 'जो य गड. बगि रै' से यहां उद्धृत है।
गुमानी ज्यूक कलमक टुक बै कुमाउनी में साहित्यकि जो छ्वय फुटौ उ माठू-मा्ठ गङ बणनै गै, द्वी सौ बरसों बटी कुमाउनी साहित्यकि ‘जो य गङ बगि रै’ उ कुमाउनीक कतुकै लेखवारोंकि कलम साधनाक बल पर बगनै, बगनै बस बगते जाणै। कुमाउनी में साहित्यकि गङ आज तलक उरातार बगनै जाणै, कुमाउनी समाज में कुछेक चिताव साहित्यपरेमी, भाषापरेमी और आपुणि मातृभाषाक कदर करणी लेखवारोंल इमें साहित्य परंपरा कैं ज्यून धरण और कुमाउनी भाषा/साहित्य कैं अघिल बढूणै लिजी चैबिसूं घड़ी सोचै-बिचारौ और आपण ख्वर खपा, बिन लोभ-लालसाक ऊं लौलीन रई। उनर हिय में एक कदर छी भाषाक और आ्ग छी आपणि भाषाक बिकासक उमें साहित्य कैं रचणक, दुनी कैं आपणि चीजकि सामर्थ देखूणकि, आपणि पछयाण और बिरासत कैं बचूणकि।
उसिक त कुमाउनी में साहित्य रचना कैं बरकरार धरण उतुक सितिल न्हैंती जो पिछाड़ि सैकड़ों सालन बटी उरातार होते उणै फिर लै इमें कयेक लेखवार आपण नीजी और सामुहिक रूप में योगदान देते आई और साहित्य परंपरा कैं बरकरार धरौ। धन शबासि छु उनू हुणि। कुमाउनी पद्य साहित्य में सामूहिक काब्य संकलनकि बात बर्ष 1969 ई. बटी शुरू हैंछ जब गिरीश तिवाड़ी ‘गिर्दा’ और दुर्गेश पंत ‘शिखरों के स्वर’ कुमाउनी साहित्य संसार में ल्याई। जमें 1800 ई. बटी 1947 ई. तकाक कुमाउनीक 23 लेखवारोंकि कबिता मिलनी। य किताब कैं आजादीक बादकि कुमाउनी भाषा में पैंल किताब लै मानी जां। यैक पछेट लक्ष्मण सिंह बिष्ट ‘स्नेही’ और रतन सिंह किरमोलिया ज्यूल मिलबेर ‘बुरूंश’ (1981 ई.) सामूहिक काब्य संकलनक संपादन करौ जमें कुमाउनी भाषाक 25 लेखवारोंकि कबिता एकबटी छन। ‘पछ्याण’ (1994 ई.) देखां भै जैक संपादक डाॅ. दिवा भट्ट छन, इमें 11 लेखवारोंकि कबिता मिलनी। बालम सिंह जनौटी ज्यूल ‘किरमोई तराण’ (2000 ई.) में संपादित करौ इमें 26 लेखवार इकबट्याई छन। इक्कीसूं सदी में लै 2000 ई. बाद कयेक सामूहिक काब्य संकलन देखां भई। साल 2005 में डाॅ. गजेन्द्र बटोही और महेन्द्र ध्यानी द्वारा संपादित ‘उड़ घुघुती उड़’ में करीब 30 कुमाउनी लेखवारोंकि कबिता छन। डाॅ. जगत सिंह बिष्ट द्वारा संपादित ‘उमाव’ (2008 ई.) सामणि आ जमें 07 लेखवारोंकि रचना शामिल छन। ‘कुमाउनी काब्य संचयन’ (2014 ई.) नामल डाॅ. चंद्रकला रावत ज्यूल संपादन करौ जमें 21 लेखवारोंकि रचना मिलनी। ‘फसक’ (2015 ई.) ललित शौर्य द्वारा संपादित कुमाउनी काब्य संकलन छु जमें 11 लेखवार शामिल छन। ‘हिंकु’ (2017 ई.) में ‘प्रकटेश्वर सृजन मंच’ बागेश्वर तरफ बै छपौ जैक भाग द्वी में कुमाउनीक 16 लेखवारोंकि कबिता मिलनी। पछाड़ि साल 2020 में द्वी सामूहिक काब्य संकलन देखण में आई- मोहन जोशी द्वारा संपादित ‘आ्ँठ’ जमें कुमाउनीक 56 लेखवारोंक कबिता शामिल छन जो कुमाउनी में ऐल तकक सबन है ठुल सामूहिक काब्य संकलन हुणक मान धरैं। वांई ‘बिनसिरि’ नामल कुमाउनी और गढ़वाली सामूहिक काब्य संकलन छपौ जैक संपादक गढ़वाली लेखवार आशीष सुंदरियाल और अनूप सिंह रावत छन, य किताबक दुसर खंड में 56 कुमाउनी लेखवारोंकि रचना शामिल छन।
यां 1977 ई. अल्माड़ बै ‘बास रे कफुवा’ कुमाउनी भाषाक पैंल साइक्लोस्टाईल पत्रिका निकाली गे जैक संपादक सुधीर साह छी इमें लै 27 लेखवारोंकि कबिता सामिल छन यैक बाद यैक सिरफ द्वी अंक निकलि सकीं-‘धार में दिन’ और ‘रत्तै ब्याल’ (1979 ई.), ‘रत्तै ब्याल’ में 22 लेखवारोंकि रचना शामिल छन। वांई कुमाउनी भाषाक पत्रिका- ‘अचल’, ‘ब्याण ता्र’, ‘आंखर’, ‘बुरूंश’, ‘दुदबोलि’, 'धाद', ‘पहरू’, ‘कुमगढ़’, ‘आदलि-कुशलि’ पत्रिकाओंक अंकों में कयेक रचनाकारोंक कबिता एक दगाड़ देखण में मिलनी। यां डाॅ. पवनेश ठकुराठी द्वारा कुमाउनी भाषाकि पैंल ई पत्रिका ‘प्योलि’ जनवरी 2020 (पैंल अंक) निकाली गे उ पुर अंक पद्य में निकलौ जमें कुमाउनीक अयाण-सयाण 11 लेखवारोंकि कबिता शामिल छन। कुमाउनी में पद्य साहित्य खूब लेखी जाणौ जमें टैम-टैम बै आपुण-आपुण तरब बै लेखवारोंल पद्य साहित्य कैं अघिल बढूण में योगदान दे।
यई क्रम में ‘जो य गङ बगि रै’ क्वे नई परयास तो न्हैं पर कुमाउनी में जो नई पीढ़ी (15-25 उमराक रचनाकार) कलम चलूणै वीक एक झलक छू, उन कलमकारों कैं कुमाउनी साहित्य संसार में परिचय करूणकि एक कोशिश छु। सांचि यलै छु कि कुमाउनी भाषा कैं आज बचूणकि जदुक जरवत चिताईनै उदुकै यैक बिकास हूण लै छु, कुमाउनी कैं बचूण और बिकासकि जो दरकार छु उ तब और लै कठिन मालूम पडू जब भारतै ना बल्कि दुनीयांक कतुकै देश अंग्रेजी भाषाक पछिल भाजनई, जैल दुनियांक हजारों बोलि-भाषा हरै जाणक कगार में छन। कुमाउनी में य बीच तब यई एक उज्याव देखां हैंछ जब नई पीढ़ीक कुछ लेखवार आपणि मातृभाषा में कलम चलूण में राजी छन। उनर हिय में आपणि मातृभाषाक लिजी ठौर छु। ऊं लागि-पड़ि बेर क्वे लै हालित में यैक बिकास चानी, यैक बिकास और यकैं समृ( बणून में योगदान दिण में गर्व चितूनी। दरकारद य लै चिताइनै कि कुमाउनी कैं सकर है सकर ब्यौहार में ल्यूण छु सकर है सकर यमें साहित्य लेखी जाण छु, यैक संगीत और लोक साहित्य कैं अघिल बढूण छु, इमें पढ़न-लेखनक रिवाज कैं उपजूण और ज्यून धरणकि जरवत छु। आ्ब कुमाउनी घर, गौं-गाड़ तकै समेरी बेर नि रै गेय य आ्ब पत्र-पत्रिकाओंकि, किताबोंकि, इस्कूलोंकि, साहित्यकि भाषा छु।
कुमाउनी में आ्ब पद्यै ना बल्कि गद्य साहित्य में लै खूब साहित्य लेखी जाणौ। कहानि, उपन्यास, निबंध और स्मारक साहित्याक करीब सबै बिधाओं कैं मिलै बेर दर्जनों किताबोंकि रचना है गे। कुमाउनी साहित्य संसार में य संजैत ;सामुहिकद्ध काब्य संकलन कुमाउनी पद्य साहित्य कैं समृ( करण और कुमाउनी भाषाक बिकास में कतुक मधतगार साबिल है सकलि य बिद्वान और हमा्र लेखवार/साहित्यकार और बखतै बतै सकल। आश और बिश्वास करनू कि हमर य परयास लै हमरि कुमाउनी भाषा, साहित्य कैं अघिल बढूण में वीक बिकास में, उकें संवारन में रङ ल्याल।
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