कुमाउनी भाषा में जापान की दो लोक कथाएं
कुमाउनी अनुवाद-
डॉ.देव सिंह पोखरिया
अल्मोड़ा (उत्तराखंड)
जादूकि चक्कि
पुरा्ण जमानै बात छु। जापान में एक भौत धनी सौकार रूंछी। वीकैं जानवरन दगै भौत पिरीम छी। वीक थैं एक भौत बड़ि घ्वड़ घरकि चैकसि करनेर कुकुर और एक सुंदर का्लि बिरालि छी। एक खूबसूरत मुर्ग और मुर्गि ले छी, जो रोज ताज-ताज आ्न दिछी।
दुरदैवल वीक भाग उलट। एकाएक उ आपणि सारि धन-दौलत हरै बैठ और यदुक गरीब है गो कि वी थैं हर दिन खा्ण-पिणैक पैंस ले नि रै।
वील आ्पण लाड़िल कुकुर बिरा्लि, मुर्ग और मुर्गि कैं बुला और रुण-रुणै बुलाण, ‘‘लाड़िल मितरो! मैं तुमुकैं भौत पिरीम करूं और सदा तुमरि देख-भाल करण चां, पर आ्ब मैं यदुक गरीब हैं गयूं कि आ्ब मैं थैं अपण और तुमुकैं खिलूण-पिलूणै लिजी पैंस न्हैंतन तुमुकै भूक-तीस देखि बेर मैंकैं भौत दुख ह्वल। ये वील मैं सोंचू, कि भल त योई ह्वल कि तुम सब यथकै-उथकै जै बेर क्वे भल घर और मालिक कैं खोजो, जां तुमरि ठीक ढङल देखभाल है सकौ‘‘।
आपण मालिककि दुखी बात सुनि बेर सबै जानवरन कैं भौत नक लागौ। क्वे लैकै आ्पण लाड़िल मालिक कैं छोड़ण नि चांछी।
‘‘कुकुडू... कू, कुकड़ू कू... हा्मि आपूं कैं छोड़ि बेर कैं नि जां‘‘, मुर्ग और मुर्गि बुलाण। ‘‘मी आऊ..., मी आऊं मी आऊ...‘‘ का्लि बिरालि म्यांऊ म्यांऊ कै बुलाणि। ‘‘हाय....हाय...आ्ब में कैकि गो मैं बैठुंल... मैं कैं को माछि सवाल...?‘‘ कुकुर भुकण-भुकणै बुलाण।
‘‘हिन....हिन...हिन... हिन‘‘ घ्वड़ हिनहिनाय मैं पर आ्ब को सवा्रि करल?’’... किलैकि उनर मालिक आ्ब उनरि देखभाल नि करि सकछी। बिचा्र दुखी जानवरन कैं अपण नौं घर और मालिक कैं खोजणै लिजी पुराण घर और मलिक कैं छोड़णै पड़ौ।
‘‘दयावान मालिक!‘‘ ऊं बुलाण, ‘‘आपूंल कदू सालन तक हम सबनकि भली कै देखभाल करै... आरिगातो...भौत धन्यबाद....आ्ब हा्मि बिदै ल्हिणै ऐ रयीं... सायोनारा... अापूं आपण ध्यान राखिया सायोनारा।‘‘
‘‘कै न कैं यस मैंस त अवष्य ह्वल जैकैं जानवरन दगाड पिरीम हो और हम सबुकैं राखि ल्हियौ....हा्मि ले सांच्चि मनल वीकि स्याव करूंल..‘‘ हिटण-हिटणै जानवर आपस में बात करणौछी।
‘‘मैं बीकैं हर दिन रात्रै उठै सकूं‘‘ मुर्गाल कुकड़ू... कूं करि।
‘‘मैं वीकैं रोज ता्ज-ता्ज अंड दी सकूं...‘‘ मुर्गि कड़कडै़।
‘‘मैं वीक घराक सब मुस पकड़ि सकूं‘‘, बिरालि म्याऊं... म्याऊं करि बुलाणि।
‘‘मैं वीक घरकि चार-डाकुन बै पहरदारी करि सकूं‘‘ कुकुर भुकि बेर बुलाण।
और मैं वीकै आ्पणि पीठ में सवारि करवै संकू, वीक खेत ले जोति सकूं..., घ्वड़ हिनहिनाण।
हिटणै-हिटणै उं सब एक भौत ठुल किसानक घर पुजीं। किरपा करि बेर आपूं हम सबन कैं नौकरी दियौ। अगर आपूं हमन कैं रा्खि ल्हयला त आपूंकि भौत भलि सेवा करूंल,‘‘ उ सब बुलाण। ‘‘म्यार पास त भौत सा्र जानवर छन, मैं कैं दुख छू कि मैं आपूं सबन कैं नि रा्खि सकूं।‘‘ किसानल कौ।
फिरि उं हिटण-हिटणै और ले किसानक घर गईं, पर उनूकैं वां लै उसै जबाब मिलौ। आब बिचार थकीं-हारीं जानवर गौंकि सड़ग पर माठू-मा्ठ हिटणै कैं रात बितूणै लिजी जा्ग खोजण लागीं।
‘‘यस लागूं कि मां क्वे ले हमुकैं राखनेर न्हैं,‘‘ मुर्ग ओर मुर्गि बुलाण।‘‘ हामि त भौत थकि ले गयां।’’
‘‘मैं भौत तागदबर छूं और बिल्कुल नि थकि रयूं,‘‘ बलवान घ्वड़ हिनहिनाणै बुलाण। ‘‘आवो तुमि द्विवै मेरि में बैठि जावो।‘‘
थ्वाड़ देर में म्याऊं...म्याऊं... कनी बिरालि बुलाणि, ‘‘हाय...हाय...मैं ले भौत थकि गयूं। भूकले भौत लागीं छू, काष! अगर एक ना्नी माछि ले मिलि जानी। या्स में त मै गलि-कुच्चाकि बिरालि है जूंल।‘‘ भुकि-थकीं बिरालि घ्वड़ाकि पिठि में चड़ि गै।
‘‘यांक सब लोग बड़ स्वार्थी छन... इनर क्वे भरौस नैं।‘‘ कुकुर हू...हू... भुकौ और उं ले घ्वड़कि पिठि में चड़ि गो।
सब जानान में है घ्वडै़ खुषमिजाज रौ। ‘‘हिन...हिन...हिन मितुरो। तदुक उदास जन होवौ...थ्वा्ड़ सोचै त....कि कम.....है-कम हामि सब एक दगाड़ त छूं।
एकलै-एकलै त नैं... योई समजो, कि हमि सब आ्पण सुंदर देष जापानक भरमण करणयां। यो दुणी भौत ठुलि छु और हमा्र भा्ल दिन जल्दी फिरि लौटा्ल। हामि सब फिरि सुखी, संतुष्ट हुंल। घबराणै क्वे जर्रत न्हैं। तुमि सब ऐरामल मेरि पिठि में सवारि कर। मैंले तुमरि मधत करि बेर खुषि छूं।
माठू-माठ ब्याल है गै और अन्यार हैगो। घ्वड़ सबै जानवरन कैं पिठि में बैठै, यथकै-उथकै देखण-देखणै रात बितूणै जाग खोजणै-खोजणै एक सुनसान जङल में पुजि गो। वां वीकैं दूर एक नानू घर देखी पड़ौ।
‘‘सैद क्वे दयालु मैंस हमुकैं केवल एक रात यां कारण द्यलो?‘‘ मुर्ग बुलाण।
जब घ्वड़ाल द्वार खोलि बैर भितेर झांकौ त वां क्वे लै नि छी। ‘‘के खाणै लिजी त नि मिल, पर यां भितेर कम-है-कम ऐराम त करि सकनूं।‘‘ कुकुर भुकौ। थकीं हारी जानवर भितेर घुसीं और एक कम्र में ऐरामल से गै। एकाएक अधरात कैं बगलाक कम्र बटी हल्ल-गुल्ल और उच्चि-उच्चि अवाज सुनीण लागै।
सबै जानवर घबड़ै बेर बिजि गै और बगलक कम्र में चुपचाप झांकौ उनुंल के द्यखौ?
भौत भयंकर-भयंकर भूत-परेत लाल, काल, हरी, नील... जिनार ख्वार पर सीङ....जलणी आंख...और लंब-लंब पुछड़ छी, जा्म छी। उं ठुल-ठुल थैलन में है चमकणी सुन, चांदि और दमकणि ज्वहरातन कैं निकालि-निकालि बेर फर्ष पर थुपुड़क थुपुड़ लगूणौछी।
एकाएक भौत भयानक भूत चिल्लाण, ‘‘भूक लागि रै....भूक लागि रै... जल्दि-जल्दि चक्कि निकालो...‘‘
यो सुनि बेर जानवर आपस में का्नि-क्वीड़ करण लाग, ‘‘चक्किल यो भूत आखिर के करा्ल...?
एक भूतल अल्मारि बै एक नानि चांदिकि चक्कि निकालि बेर फर्ष पर रा्खि दी।
फिरि चक्कि कैं दैणि तरफ घुमूण-घुमूणै बुलाण, ‘‘सूप निकल... सूप निकल...’’ ठुल-ठुल गरम-गरम मीस सुपक कटौरा्क कटौर चक्कि बै निकलणै ऐ। भूतनल छकि बेर बड़ि सूप पी।
फिरि ‘‘चांल निकल...चांल निकल...‘‘ भूत चिल्लाण।
ताजी, खुशबूदार, सफेद चांलल भरीं थालाक-थाल चैपस्टिक्स समीत चक्कि बटी उमड़णै निकलि ऐ।
‘‘माछि निकल....जल्दि निकल....‘‘ भूत चिल्लाण।
किसम-किसमाक स्वादिष्ट मा्छ....रोहू झींगा...चिगड़ी...किकड़ गरम.....गरम चक्कि बै निकलणै ऐ।
भूत-परेतल बड़ि-है-बड़ि खा्ण छकि बेर खा। जब उनर पेट भरी गै त भूतल चक्कि बौं तरफ घुमै और अवाज लगै, ‘‘बंद कर... बंद कर...।’’ चक्कि एकदम रुकि गै। यदुक स्वादिष्ट, भल खा्ण चक्कि बै निकलण देखि बेर बिचा्र थकी, भुक जानवरनकि त लार टपकण लागि। काश! हमुकै लै के खा्णकि मिलि जा्ण... उं सोचण लाग। फिरि भूत-परेत फर्ष में सिति बेर जोर-जोरल घुरण लाग... ज... ज...ज। उनुकैं गैरि नीन में सेतीं देखि बेर घ्वड़ जानवरन धैं फुसफुसै बेर बुलाण, ‘‘मितुरो मेरि बात ध्यानल सुन, अगर हा्मि सब मिलि बेर इन भुत-परेतन कैं डरै बेर यां बै भजै द्यूं त इनर सब धन, सुन, चांदि, जवाहरात और जादूकि चक्कि ले हमार हात् ऐ सकैं।
‘‘कसिक... कसिक... हमुकैं बतावो ?‘‘ सबै जानवर भौत उत्साहल भरि बेर बुलाण, ‘‘जो तू कौलै हा्मि उई करूंल।‘‘ ‘‘द्यखौ... पैली कुकुर मेरि पिठि में सकंछ फिरि बिरालि कुकराकि पिठि में चड़ि जौ। फिरि मुर्ग और मुर्गि द्विवै बिरालि में बैठि जून।
‘‘फिरि हम सब एक्कै दगाड़ हिनहिनाणे...बाऊ...बाऊ...मुकणै, म्याऊ कुकड़ू......कूं सूब जोरल शोरगुल, हल्ल-गुल्ल करण-करणै इन भूत परेतन क कम्र में घुसि बेर उनूं पर टुटि पड़ुंल, मेरि बात भली कैं समाजि ल्हि हिटौ आब जल्दि-जल्दि करों.....‘‘ घ्वड़ बुलाण। सबै जानवर जल्दि पिठि में चड़ि गै, जसिक घ्वड़ाल बताछी।
‘‘आब सब तैयार है जावै, ‘‘घ्वड़ एक.....द्वी.....तीन....।‘‘ हिनहिनाय।
‘‘हिन.....हिन.....हिन...।‘‘
‘‘वाऊं...वाऊं...वाऊं।
‘‘म्याऊं...म्याऊ...म्याऊ।
‘‘कुकड़कूं...कुकडूं...कूं...।
कदुक डरलैण शोरगुल कदू भयंकर हा-हल्ल...करन फोड़नेर...जसिक जानवर एक्कै दगा्ड़ हिनहिनाणै...वाऊं....वाऊं...भुकणै...म्याऊं...कुकड़ू.....कूं जोर-जोरल हल्ल-गुल्ल करणै सेतीं भूत-परेतन पर टुहि पड़ीं।
गैलि नीन में सेतीं भूत-परेत अचाणचक जागि उठ और डरल थर-थर कामणै...चिल्लाणै, ‘‘राछयट....भयंकर राछयट! यो हम सबुकैं खै जा्ल...भाजौ...भाजौ।‘‘ चिखणै-चिल्लाणै अपण समान उती छोड़ि बेर ज्यान बचूणै लिजी ख्वार में खुट धरि बेर दूर जङल में भाजि गईं।
जब जानवरन कैं भूत-परेतन कि इदुक धन, संपति, जादूकि चक्कि, फर्श में फैलीं मिलि त उनरि खुषिक ठिकाण नि है। उनूंल घ्वड़कि खूब बड़ै करि।
‘‘हम सब भौत भागिवान छां। आ्ब त हम भौत ऐरामल यां रै सकनूं।‘‘ मुर्ग बुलाण।
‘‘ये धन, संपति और जादूकि चक्कि कैं हमुकैं आ्पण लाड़िल मालिक कैंल्हि जै बेर दिण चैं।‘‘ स्वामिक भगत घ्वड़ बुलाण, ‘‘ वील कदुक लंब बखत तक हमरि लाड़-प्यारल देखभाल करै। ‘‘हो... होइ...’’ सबै जानवर परसन है बेर बुलाण, ‘‘हमुकैं यै करण चैं।‘‘ जानवर भूत-परेतनकि छोड़ी संपति और जादूकि चक्कि ल्यै बेर आ्पण पुरा्ण मालिका घर वापिस ऐ र्गेइं। उनुकैं देखि बेर उ भौत चकित और परसन हैगो।
उ खुषिक आंसु टपकूणै बुलाण, ‘‘लाड़िल मितुरो। आपूंक भौत स्वागत छू। आपूं सबुकैं फिरि देखि बेर मैं भौत खुष छूं, पर मैंकैं दुख छू कि मैं ऐल ले आपूं कैं के खिलै-पिलै नि सकूं, किलै की मैं ऐल ले भौत गरीब छूं।‘‘
‘‘दयालु मालिक आपूं यैकि बिल्कुल चिंत नि करौ‘‘ स्वाभिक भगत घ्वड़ हिनहिनाण, ‘‘आपंूल हम सबूं कैं लाड़-प्यारल भौत दिनन तक देखौं भालौ। आब हम सब आपंकि देखभाल करूंल ।
यस कूणै-कूणै वील भूतन बै मिली चमकणी सुन, चांदि, दमकणी ज्वाहरात, जादूकि चक्कि सबै जानवरनक तरफ बै मालिक कैं भेट करि दी।
‘‘यो जादूकि चक्कि छू। आपूं देखणै जावो, यो कसिक चलैं, घ्वड़ हिनहिनाण, ‘‘देखौ...देखौ।’’
किसम-किसमा स्वादिष्ट खा्ण चक्कि बै निकलण देखि आष्चर्य में डुबीं मालिक कैं आ्पण आंखन पर बिष्वास नि भै। ‘‘अद्भुत...अद्भुत...‘‘ वील चिल्लै बेर दांतना तलि आङुल दबै ल्ही।
फिरि वील सबै जानवरनक दगाड़ बैठि बेर बड़ि दावत खै। हँसी-खुषी यदुक खा....यदुक खा...जैक क्वे अंत नैं....।
‘‘आरिगातो....आरिगातों....धन्यवाद...धन्यवाद... म्यार लाड़िल मितुरो...!’’
उ परसन है बेर बुलाण।
आब त मालिक फिरि भौत धनी हैगो। वीकैं कै चीजै ले कमी नि रै और वीक दिन आपण लाड़िल जानवरनक दगाड़ भौत सुख और चैनल कटण लागीं।
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मस्स वाल बाबा
भौत दिन पैलीकि बात छू। जापानाक एक ना्न गौं में एक बुड़ छी, जैक दैण गालड़ में एक मस्स छी। उ यदुक ठुल छी कि एक पाकी आरु जस गाला्ड़ में लटकणैछी। बुड़ कुछ अजीब जस जरूर लागछीं पर उ सदा परसन रूंछी और कभै ले कैकी काटणि नि करछी। वीकैं नाचण-गैण भौत भल लागछी, और गौंक नान्तिनन कैं बुलै-बुलै बेर उना्र दगाड़ नाची करछी।
‘‘या...रा...या...रा...
ऐ...सा...ऐ...सा...’’
सबै एक दगाड़ खुषि हुंछी, ता्लि बजै बजै बेर हर दिन गैणै-नाचणैं, हँसछी-खेलछी। एक दिन बुड़ लाका्ड़ काटणै लिजी पहाड़नकि तरफ गो। जब काम खतम करि बेर उ लौटणै लागि रौछी कि अचाणचक पुर अगास का्ल-धण बादलनल ढकी गो। बिजुलि झिलमिलाणि जसि चमकण लागि। तेज हावल रूख गर्जि-गर्जि बेर झुमण लागीं।
‘‘रिम....झिम...रिम...झिम...
रिम...झिम...रिम...झिम...‘‘
‘‘आब त मैंकैं जल्दि लौटण चैं‘‘ बुड बड़बड़ाण। रूख झुमणै-झुमणैं झुकण लागीं और हाव जादू शोरल बगण लागि। ‘‘मैं तुफानी बर्ख में घर लौटि नि सकूं। आबत यैं कैं आश्रय ल्हिण पड़ल।‘‘ वील सोचै- ‘‘जब तक बर्ख रूकि नि जाणि मैं यैंई बैठि रूंल।‘‘
रात है गै और बर्ख लै बंद है गै। ये बखत रात कैं घर नि जूं। निकत योई ह्वल कि मैं रात यैं बितै बेर भोल रत्तै घर जूं।‘’ वील सोचै।
अचाणचक वीकैं एक अनजाणि अवाज और नजिक ऊणी खुटनकि आहट सुनन में ऐ। पर ये हँसि-खुषिक अवाजन में मिली-जुली तेज बगणी हावनकि और तूफानन में झुमणी रूखनकि आवाज लै छी।
बुड़ाल लुकि बेर झांकौ कि यो त लाल नील, हरी, पील भूत छी। उनुकैं देखि बेर बुड़ डरक भारी थर-थर कामण लागो। उ बर्ख में भिजि बेर निझूत है गौछी और वीकैं भौत जा्ड़ ले लागणौछी। उ भौत जोर छींकौ ‘‘आ... टि...शू...’’
तुफानाक भुत-परेतोंल वीकि छींक सुनि बेर वीकैं। ढुनि ल्ही। वीकैं खैंचि बेर भ्यार निकाली गो।
‘‘नाचैं... नाचै...।‘‘ उं चिल्लाण ‘‘हमार लिजी नाचै...नाचै।‘‘ बुड़ यो सुनिबेर भौत परसन भौ, किलैं की वीकैं नाचण भौत भल लागछी,
‘‘या...रा...या...रा...
ई...सा...ई...सा...‘‘
तुफानाक भूत-परेत जोर-जोरल तालि बजै-बजै बेरि गैंण लागीं। बुड़ गोल-गोल घुमणै फूल जस हा्वन में यथकैं-उथकैं झुमणै और हिरन जस उच्च-उच्च उछिलि बेर नाचणै रौ ‘‘और नाचै....और नाचै’’ बोलणै, गैंणै, हंसणै भूत-परेत जोरल चिल्लाण।
फिरि उनर गैण मिठ और कौंल है गो और बुड़ ले दगड़-दगडै़ एक सुंदर सल्ला रूखै चारि बगणीहावन में यथकैं-उथकै झुकि-झुमण लागो।
जब भूत-परेतनक गैण खतम भौ, त बुढ़ ले ऐराम करणै बैठि गो। वील देखौ कि रत्तै है गैछी और सूरज थ्वाड़-थ्वाड़ बादलनक बीच देखीणैछी। ‘‘अरे, मैं त पुरि रात भरि नाचि रयूं’’ यो सोचि बेर वीकैं भौत अचंभ भौ।
‘‘अद्भुत-अद्भुत’’ तुफानाक भूत-परेत तालि बजै-बजै बेर चिल्लाण, ‘‘तु यां भोल फिरि जरूर आये और हमरि लिजी नाचे। और यो पक्क करणै लिजी कि भोल तू यां जरूर आलै, हमि त्यर यो सुंदर ‘आरु‘ जो त्यर मूख पर उगि रौ, त्वे बटी ल्ही ल्ह्यूंल। मगर तू चिंता नि कर। येकै हा्मि भौलै तुकैं वापिस करि द्यूंल।‘‘
यो कैबेर तुफानाक भूत-परेतनल वीक दैण गालड़ पर लटकणी मस्स निकालि ल्ही और वीकैं जाण दी। बुड़ आपण मस्स निकलवै बेर स्यैंणि और मितुरन कैं बुलै-बुलै बेरि हँसणै-हँसणै बुलाण, ‘‘द्यखौ-द्यखौ म्यर यतुक ठुल मस्स त निकलि गो।‘‘
फिरि वील सबुकैं तुफान भूत-परेतनक बार में बता कि रात में के भौ कैं। वीकि बात सुनि बेर सबै बुड़ाक-दगाडै़ भौत परसन भईं। बुड़ा्क एक पड़ोसि बुड़, जो वी की उमरक छी, वीक गालाड़ पर ले आरू जस ठुल मस्स लटकछीं। मगर वीक बौं गालड़ पर छी। जब बुड़ाक बात सुनि, त वील सोचै कि वु लै पहाड़न पर एक रात बितै बेर तुफानाक भूत-परेतन बै आपण मस्स निकलवै ल्ह्यल। यो सोचि बेर उ ले पहाड़न पर चड़ि बेर उसै रुखाक जड़ाक खुखल में बैठि गो। उ तुफानाक भूत-परेतनक इंतजार करण लागौ।
फिरि तुफान आ और कदू जोर-षोरक भयंकर तुफान छी यो। यस लागछी, कि बादननकि गडगडाट और बिजुलिकि चमक अगास में छेद (का्ण) करि देलि बर्ख जोर-षोरल बरसणी ऐ। बुड़ भौत घबराण, मगर चुपचाप लुकि बेर बैठिये रौ। फिरि तुफानाक भुत-परेत आईं और बुड़ कैं खैंचिबेर भ्यार ल्हि आईं।
‘‘नाचैकृ...नाचैं...‘‘ उं चिल्लाण, ‘‘हमार लिजी उसिकैं नाचै जसै बेलि नाचि छै।’’
मगर ये बुड़ कैं नाचण बिल्कुल नि औछीं उ उनार सामणि एक डरपोक सांसै चारि चुपचाप ठाड़ रौ।
वी देखि बेर भूत-परेत झुंझलै बेर बुलाण,
‘‘अगर तू मि नाचि सकणै, त हमार दगा्ड़ जन रै। तू आपण यो आरु ल्हि जा और घर न्है जा।‘‘
फिरि उनुल पैंल बुड़ाक मस्स ले ये बुड़ाक दैण गालड़ पर चिपकै दी। त आब वीकैं आपणि पुरि जिन्दगी मूख पर एक मस्साकि जाग, द्वी-द्वी मस्सनक दगा्ड़ काटण पड़ि।
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