कुमाउनी कविताकि गड. और लेखनीकि लहर

डाॅ. पवनेश ठकुराठी, अल्मोड़ा (उत्तराखंड)

( 'जो य गड. बगि रै' कुमाउनी सामूहिक कविता संकलन की भूमिका)

         हियकि मुक्ति लिजी मनखी जो शब्दोंकि साधना करूं उई कबिता छ। कबिता चित्त कैं आनंदकि अनुभूति करूछि और यें में ‘सत्यं शिवं सुंदरम’ कि भावना मौजूद रूछि। कुमाउनी भाषा में लिखित काब्यकि शुरूवात 1800 ई. बाद बै मानी जांछि और लोकरत्न पंत ‘गुमानी’ कुमाउनीक पैंल कबि कई जानी। गुमानी पंतक बाद श्रीकृष्ण पांडे, गौरीदत्त्त पांडे ‘गौर्दा’, श्यामाचरण दत्त पंत, चंद्रलाल वर्मा ‘चैधरी’, चिंतामणि पालीवाल, चारूचंद्र पांडे, शेर सिंह बिष्ट ‘अनपढ़’, बंशीधर पाठक ‘जिज्ञासु’, गिरीश तिवाड़ी ‘गिर्दा’, मथुरादत्त मठपाल, एम.डी. अंडोला, हीरा सिंह राणा, महेन्द्र मटियानी आदि अनेक किबियोंल कुमाउनी कबिता कैं समृद्ध करौ। आजक टैम पर कुमाउनी में कबिता एक यसि बिधा छू जैमें सबहैं जादे काम हुनौ। आज तमाम मौलिक और संपादित कबिता संग्रह सामणि उनईं।

‘जो य गड. बागि रै’ कबिता संकलनक अनुशीलन ये नजरियल जरूरी है जां कि यो एक नौजवान कुमाउनी रचनाकारोंक संकलन छ और खास बात यैक संपादन लै एक नौजवान रचनाकारल करि राखौ, जैक नौ छ- ललित तुलेरा। ये संकलन में कुल 17 नौजवान रचनाकारोंकि कुल 68 कबिता एकबटी छन।

‘जो य गंड. बगि रै’ संकलनक पैंल कबि छन-भास्कर भौर्याल,जनरि ‘हिमालकि काखि’, ‘पहाड़कि सैणिक हाल’, ‘किलै नि सोचि’, ‘इजुलि’ कुल 4 कबिता संकलन में एकबटी छन। भास्करकि कबिताओं में एक तरफ हिमाल और हिमालक खबसूरत प्राकृतिक वातावरण छ, दुसरि तरफ पहाड़क सैणियों लिजी संबेदना और पहाड़क लिजी चिंता लै छु। ऊं जां एक तरफ लेखनी ‘बणौं में जंगलों मजी, बुरूसै की लाली’, वांई दुसरि तरफ ऊं यो सवाल पुछन लै नि भुलन-

  '‘किलै नि सोचि दाज्यू तुमूल,

किलै नि जाणि दाज्यू तुमूल?

तुमरै छि यो बण-जंगल,

फुकि हाली इनन कैं तुमूल।’’

भास्कर जां पहाड़क प्राकृतिक वातावरण बै अभिभूत छन वांई उं पहाड़क समाज, संस्कृति और पहाड़कि समस्याओं बै लै भलिकै वाकिफ छन। ‘इजुलि’ कबिता में ऊं पहाड़ि स्यैणियोंक संघर्ष कैं दर्शाते हुए लेखनी-

‘‘बण जंगलों में हिटन-हिटनै

मड.-इजरों में रिटन-रिटनै

खुट त्यार खुट कां रई, ढुड. है गेई

हात त्यार हात कां रई, डाव है गेई।‘‘

ये संकलनक दुसर कबि प्रदीप चंद्र आर्या छन, जनरि ‘आश भिटौलिक’, ‘आ्ब गौं, गौं नि रै ग्याय, ‘आपण मनकि बात’, ‘म्यर गौं सुकिल’ कुल 04 कबिता संकलन में एकबटी छन। इनरि कबिताओ में गौनक शांत व सरल जीवनक चित्रण हैरौ। उनर कूण छु कि आब गौं, गौं नि रै ग्याय किलैकी गौंक रीत-रिवाज, संस्कार, संस्कृति, परंपरा सब बदेइ गईं।

ये संकलनक तिसर लेखवार छन कबयित्री भारती जोशी, जनरि ‘मी तुमरि चेलि’, ‘फौन’, ‘पहाड़ म्यर कदुक माइल’ मुबाइल’ कुल 3 कबिता ये संकलंन में एकबटी छन। भारती कैं आपण पहाड़ भौत मयालु लागूं किलैकी यांक समाज और पर्यावरण भौत सुखदायी छ। याक मनखी-एक दुहरकि मधत करना लिजी सदा तैयार रूनी और यांक पर्यावरण इतुक भल छ कि कसै कैं बिमारि नि है पानि। आपणि ‘फौन’ कबिता में ऊं आजक टैम में मनखीकि जिंदगी में फौनक बर्चस्व कैं दिखून में कामयाब है रईं।

ये संकलनक चैथूं कबि दीपक सिंह भाकुनी छन, जनरि ‘मैकैं जरा बता आमा’, ‘य बखत बेमान हैगो’, ‘चैमास’, ‘म्यर उत्तराखंड’, ‘ऐगे बसंत रितु ऐगे’ कुल 5 कबिता ये संकलन में शामिल छन। इनरि कबिताओं में उत्तराखंडक खुबसूरत प्रकृति-परिवेशक चित्रण हुनाक अलावा उत्तराखंडकि समृद्ध धार्मिक बिरासतोंक लै चित्रण हैरौ- 

         ‘‘बद्री ,केदारनाथ, गंगोत्री ,यमुनोत्री

चारों धाम लागनी यां स्वर्ग समाना 

हाट की कालिका माता नंदा देबी मय्या

देबों की देबभूमि हरि का हरिद्वारा

जै जै हिमाला, जै जै हिमाला।’’

दीपक आपणि कबिताओं में बसंत और चैमास रितुओंक चित्रण करनी, दगड़ै बखतकि बेइमानी कैं ले सामणि ल्यूनी। समाज में आई तमाम बदलाव उनूकैं बखतकि बेइमानीक हिस्स लागनी।

ये संकलन में कबयित्री गायत्री पैंतोलाकि ‘पहाड़ाक लोग’, ‘नानछन’, ‘पहाड़ाक चेली ब्यारी’, ‘मैत’, ‘हमरि संस्कृति हमरि पछयाण’ कुल 5 कबिता शामिल छन गायत्रीकि कबिताओं में पहाड़ाक लोग छन, जो मिहनती और ईमानदार हुनी, पहाड़ाक नानतिन छन, जो दिन भर धूल भाटि में खेल करनी और छन यांकि चेली ब्वारि, जो सबूंक ध्यान धरनी। गायत्रीक हिसाबल वीकि संस्कृति वीकि पछयाण छु, जो घर-परवार बै ल्हीबेर संस्कृतिक तमाम आयामों में देखींछ।

ये संकलनकि सातूं कबयित्री हिमानी डसीलाकि कुल 3 कबिता ‘अल्माड़ गल्माड़', ‘गौं शहैर’, ‘गौं पुजै सड़क’ शीर्षकल एकबटी छन। हिमानीक कबिताओं में पहाड़कि संस्कृति और संस्कृति में आई बदलाव दुवैनक चित्रण छ। आपणि ‘अल्माड़ गल्माड़’ कबिता में ऊं अल्मोड़ाकि समृद्ध सांस्कृतिक बिरासतोंक, ‘गौं शहैर’ कबिता में गों पनिक स्थिति और पलायनक और ‘गौं पुजै सड़क’ कबिता में गौंऊं में बिकासकि स्थितिक यथार्थ चित्रण करनी। कबयित्रीक कून छ कि एक ठुल मैंस छु, जो उम्मीदकि गाड़ि ल्हीबेर गौं में ऊं और गौंक बिकास वी ठुल मैंसकि गड़िक टैरन में घुमते रूं। यां कबयित्रीकि कल्पना अत्यंत सराहनीय छ-

        ‘‘आज ले रोज दौड़नी उ सड़क में 

कई उम्मीदनक गाड़ि

जै टैरन में घुमते रूं बिकास’’

ये संकलन में कबयित्री कविता फर्तयालकि ‘रङिलो पहाड़’, ‘सौरासै चेलि’, ‘शराबल’, ‘यो मेरि जनमभूमि’ कुल 4 कबिता शामिल छन। कबिताकि कबिताओं में एक तरफ पहाड़क रङिल-चङिल रूप छु त दुसरि तरफ शराबल उजड़ीना पहाड़ लै छ, जैक रूप पैंलीक पहाड़ बै भौत अलग छ। गीतात्मकता और लयबद्धता इनरि कबिताओंकि खासियत छ।

ये संकलकि अघिल कबयित्री छन ममता रावत। इनरि ‘पहाड़ाक हाल’, ‘फौजी जवान’, ‘गौनू बै पलायन’, ‘खेलूंल खेल’, ‘मुबाइल’ कुल 5 कबिता संकलन में शामिल छन। ममताकि ‘पहाड़ाक हाल’, ‘गौनू बै पलायन’ कबिता पहाड़कि समस्याओंक चित्रण करछीन, ‘फौजी जवान’ कबिता देवभूमिकि बीर परंपरा कैं रेखांकित करैं जबकि ‘खेलूंल खेल’ और ‘मुबाइल’ कबिता बाल कबिता छन। ‘फौजी जवान’ कबिता में फौजियों लिजी कबयित्रीकि भावना देखन लैक छ-

        ‘‘म्यर देशक फौजी जवान, 

सीमाओं पै डरि रया...

तुमूकैं राखी कसम, 

देशकि लाज धरिया।’’

ये संकलन में कबि मनोज सिराड़ीकि 3 कबिता छन, जो क्रमशः ‘इज’, ‘झुठि शान’, ‘पहाड़कि पीड़’ छन। ‘आपणि इज’ कबिता में मजोजल इजाकि  महानताक चित्रण करि राखौ। ‘झुठि शान’ कबिता आपणि बोलि-भाषा और आपणि संस्कृति कैं बचूनाकि वकालत करैं, जबकि ‘पहाड़कि पीड़’ कबिता शोषण, शराब, बेरोजगारी, बदहाल स्वास्थ्य ब्यौस्था आदि समस्याओंल पीड़ित पहाड़कि बेदना कैं मुखर करैं।

‘जो य गंड. बगि रै’ संकलनक दसूं कबि रोहित जोशी छन। ये संकलन में रोहितकि ‘शराब’, ‘इजकि बात’, ‘कथां हरै गईं उं दिन’, ‘एक रीत छी’ और कोरोन कुल 5 कबिता एकबटी छन। इनरि ‘एक रीत छी’ और ‘कोराना’ कबिता ‘कोरोना’ वायरस बै दुखी मनखीकि कबिता छन। ‘कथा हरै गेई उं दिन’ कबिता सामाजिक-सांस्कृतिक बदलावोंक चित्रण करैं जबकि ‘इजकि बात’ कबिता एक इजाकि भावनाओं कैं सामणि ल्यूंछि।

ये संकलन में कमल किशोर कांडपालकि ‘पहाड़ यसै जै कि रौल’, ‘नंदू न्हैगो भाबर’, ‘कलजुगी नातिक रड.’ मि त्यर मुबाइल हुन धैं’, ‘जो तू ऐ जानी एक बार’ कुल 5 कबिता शामिल छन। कमलकि ‘पहाड़ यसै जै कि रौल’, ‘नन्दू  न्हैगो भाबर’, और ‘कलजुगी नातिक रड.’ कबिताओं में हमर पहाड़ में आई सामाजिक-सांस्कृतिक बदलावोंक चित्रण है रौ। गौंकि स्थिति बा्ंज खेत-पात, शहरीकरण, सांस्कृतिक पतन आदि कैं देखिबेर ऊं ‘पहाड़ यसै जै कि रौल’  जसि कबिता लिखना लिजी मजबूर है जानी-

‘‘हमर पहाड़ यसै जै कि रौल,

धा्र हरै गई, हरै गई नौल।

खेति-पाति बांजि पड़ि गै,?

गुणि बानरोंक हैरै चैल।’’

कवि कमल यो जाणनी कि नंदू पहाड़कि कतुक कीमती बिरासत कैं छाड़िबेर भाबर जैरो और ऊं यो लै जाणनी कि कलजुगी नातिक कस रड. हुनी।

आपणि शृंगारिक कबिता ‘जो तू ऐ जानी एक बार’ क माध्यमल कमल आपणि प्रेमिका थैं मिलनाकि इच्छा धरनी, जबकि दुसरि श्रृंगारिक कबिता माध्यमल ऊं आपणि प्रेमिका हातक मुबाइलक बणन चानी-

‘‘मि त्यर मुबाइल हुन धै

   त्यारै दगड़ रून।’’

ये संकलन में भावना जुकरियाकि दी कबिता ‘देशकि शान’ और ‘नानछन’ शामिल छन। भावनाकि ‘देशकि शान’ कबिता देशक फौजियों कैं देशकि आन, बान, शानक रूप में चित्रित करैं, जबकि ‘नानछन’ कबिता नानछना दिनों कैं इंद्रैणिकि चारि रंगीन और अनमोल बतूंछि।

ये संकलन में प्रकाश पाण्डे ‘पप्पू पहाड़ी’ कि ‘पहाड़कि ब्वारि,’, ‘कधिनै पहाड़ त आवो’, ‘म्यर च्यल घर ऐरौ’ कुल 3 कबिता शामिल छन। प्रकाशकि पहाड़कि ब्वारि कबिता पहाड़ि स्यैणि-मैसोंकि मिहनत, उनर संघर्ष और उनारि दिनचर्याकि चित्रण करैं।

‘‘रत्तै उठी जङव जांछी,

वां बै ल्यूंछी बांज।

गाड़-भिड़न बै घर ऊण में,

पड़ जांछी सांझ।’’

इनरि ‘कधिनै पहाड़ त आवो’ कबिता मनखियों कैं पहाड़ ऊना लिजी प्रेरित करैं और ‘म्यर च्यल पर ऐरौ’ कबिता एक शहीद सिपैक इजाकि भावनाओं कैं ब्यक्त करैं।

ये संकलन में पीयूष धामीकि ‘जागो रे’, ‘बिकास’, ‘कुंभ’ कुल 3 कबिता संकलित छन। पीयूष ‘जागो रे’ कबिता में मनखियों थैं आपणि संस्कृति कैं बचूणाक आह्वान करनी। ‘बिकास’ कबिता में बिकासक नाम पर हुणी वालि राजनीतिक चित्रण करनी और ‘कुंभ’ कबिता में ऊं कुंभ पर्व और गंगा द्वार हरिद्वारकि महत्ताक निरूपण करनी।

ये संकलन में कबयित्री पूजा रजवारकि कुल 4 कबिता ‘भिटौलि’, ‘चेलिक चिट्ठी बौज्यू खिन’, ‘नानछना दिन’ और ‘बरखाक दिन’ शामिल छन। इनरि ‘भिटौलि’ कबिता में भिटौलि लोकपर्वक चित्रण छु, ‘चेलिक चिट्ठी बौज्यू खिन’ कबिता में एक नौजवान पहाड़ि चेलीकि भावनाओं कैं कबिल बाणी दी राखी,

‘नानछना दिन’ कबिता हमूकैं नानछना दिनूकि फाम दिलूंछि और ‘बरखाक दिना’ कबिता बरखा दिनों माध्यमल पहाड़ि स्यैणि-मैंसोकि काम-धंदक चित्रण करैं।

ये संकलनकि कबयित्री ज्योति भट्टकि ‘एक पाकेट बिस्कुट’, ‘मेरि आ्म’, ‘स्यैणि’ कुल 3 कबिता संकलन में शामिल छन। ज्योतिकि कबिता संकलन में आई तमाम दुहरि कबिताओं बै थ्वाड़ अलग छन, विषयवस्तुकि दृष्टिल लै और संबेदनाकि दृष्टिल लै। इनरि यों तीनै कबिता गैलि संबेदना और बिचारकि कबिता छन। इनरि कबिताक एक पाकेट बिस्कुट ल्यै बेर घर ऊणी वा्ल मर्द जो य सोचूं कि एक पाकेट बिस्कुटल घर चलि जां और घर ऐबेर स्यैणि कैं मारू-सतूं, केवल इनरि कबिताक मर्द न्हां, उ पहाड़ाक घरों में रूणी वाल तमाम मर्दोंक प्रतिनिधित्व करूं। इनरि कबिताकि आ्म पुर पहाड़कि संस्कृति प्रतिनिधित्व करनी वालि आ्म छु। इनरि कबिताकि स्यैणि पहाड़ाक ऊ स्यैणि छन, जो शारीरिक रूपल समर्थ नि हुनाक बावजूद दिन भर काम में जुटी रूनी। काम करते-करते उनूकैं सालों बिति जानी लेकिन आपण घरवालाक प्यारक द्वी बोल उनूकैं सुणनहूं नि मिलन। ज्योतिकि कबिताओंकि गैलि संबेदना कैं दिखूनी वा्ल एक उदाहरण दीई जनौ-

        ‘‘न आब आ्म छ

न गदुवाक टुकनक साग

उ मिसिरीक खंट लै न्हांथिन

पर आमकि याद

आज लै दगड़ै छु।’’

ये संकलन में संकलनक संपादक और कबि ललित तुलेराकि कुल 7 कबिता एकबटी छी। यों कबिता ‘दिगौ लालि’, ‘धाद’, ‘उ’, ‘पछयाण’, ‘जिंदगी में’, ‘मैं और मै’ और ‘आँख उघाड़ो’ छन। ललितकि कबिताओं में द्वी चीजों लिजी चिंता खास तौरल ब्यक्त हैरै-एक आपण पहाड़ाक लिजी और दुसर मनख्योव लिजी। ललित जाणनी कि पहाड़ आब पहाड़ नि रै गाय, यांकि बाखइ बै बाट-घाट तलक सब बांजी गईं। पहाड़ाक दुखों कें समझिबेर ऊं सवाल पूछनी-पहाड़क लै सुख्यार दिन कब आल?

ललित आपणि कबिताओंल मनखियों कैं जगुनी आपणि भाषा-संस्कृति, आपणि पछ्याणक लिजी। ऊं आपणि भाषा-संस्कृति बै दूर हैते जाणईं मनखियों सामणि एक ठुल सवाल ठाड़ करि दिनी-

‘‘ जो तुमर भरौस सौंप जैरीं

पछ्याण, संस्कृति, दुदबोलि।

खड़पट्ट, बजी जा्ल

निखाणि हलि, गाड़ बगल सब

के जबाब देला भोवक दिन

आपणि आनि औलाद कैं?’’

ललित मनखियों कैं मनख्योवकि लकार दिखुनी वा्ल कबि छन। ऊं हर हाल में मनखियत कैं बचून चानी। यसै ‘आँख उघाड़ो’ कबिताकि खासियत द्यखो-

        ‘‘आँख उघाड़ो, गिच खोलो

एक हवो, उज लावो

तड़ि लगाओ, मनख्योवक लिजी’’

य संकलनक संपादक ललित तुलेरा हमर सामणि कुमाउनीक १७ नौजवान रचनाकारों कैं ल्यै रई।ये लिजी तुलेरा ज्यूकि सराहना करी जान चैं। कुमाउनी भाषा व साहित्य लिजी उनर लगाव देखन लैक छ। ये संकलन में शामिल कबि कुमूक बिबिध इलाकों बै संबद्ध छन, जै कारण उनूमें भाषाई बिबिधता त नजर ऊंछि, लेकिन सबूं में कुमाउनी कबिता लिजी अपार संभावना नजर ऊंछि। संकलन में मौजूद कयेक कबियोंकि कबिता में गैलि संबेदना और गजबकि सामर्थ छ। शिल्प पक्ष लै इनरि कबिताओंक परभावित करूं अघिल कैं लै उरातार कलम चलाते रून चैं। युवा कबिताकि ‘जो य गड. बगि रै’ उ थामिन नि चैंन। निश्चित रूपल ये गड. बै उठणी वालि लहर जरूर एक दिन दूर-दूर तक पुजलि और कुमाउनी कबिताक गाड़-खेतन कैं हरियो-भरियो बणालि। शुभकामना।

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