उत्तराखंडी समाज में बरसों बै चली आई बालगीतोंकि बिरासतकि किताब : घुघुति बासूति
ललित तुलेरा
बागेश्वर, (उत्तराखंड)
( यां 'घुघुति बासुति' किताबकि कुमाउनी भाषा में समीक्षा करी जैरौ। य किताबक संकलक हेम पंत, पिथौरागढ़ छन। समीक्षक ललित तुलेरा छन। )
आपणि भाषा, संस्कृति और स्वर्ग जस पहाड़ दगै गैल जुड़ाव धरणी और प्रेम करणी हेम पंत द्वारा उत्तराखंडाक बालगीतन कैं एकबट्यै बेर किताब रूप में छापी जैरौ। य किताबक नाम उनूल 'घुघूति बासूति' धरि रौ। उईं बाल गीत जो नानतिनां कैं रचनात्मकता तरफ खींचनी, नानतिनोंक व्यक्तित्व निर्माण, चरित्र निर्माण और आपण परिवेश, संस्कार और समाज कैं जाणन में मधतगार हुनी।
य किताब उत्तराखंडाक कुमाउनी व गढ़वाली समाज में पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक रूपल चली आई बालगीतोंक छु। बालगीत कुमाउनी, गढ़वाली, जोहारी, रँवाई लोकभाषाओं में छन। कुल 55 बालगीत इमें एकबट्याई छन। जनूमें 24 गढ़वाली बालगीत, 30 कुमाउनी बालगीत, रँवाई बोलीक 2 बालगीत, जोहारी बोलिक 03 बालगीत और एक बालगीत हिंदी और कुमाउनी में लै शामिल कर राखीं। कुमाउनी समाज में हर्याव, दुतिया समेत हौर त्यारोंक मौक पर सयाणों द्वारा नानतिनों कैं लंबी उमर, सुख-समृद्धि लिजी आशीष बचन दिई जां। यो आशिरबचन लै शामिल करि रौ-
जी रए, जागि रए
यो दिन-मास भेटनै रए
धरती जस चाकव है जाए
अगास जदुक उच्च है जाए
दुबक जस जड़ हैजो
पातिक जस पौव है जो
सुरजक जस तराण है जो
स्यावक जस बुद्धि है जो
सिल पीसी भात खाए
जाँठि टेकि झाड़ जाए।
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घुघूति-बासूति
• संकलक- हेम पंत
• प्रथम संस्करण- 2022
• पेज- 60
• प्रकाशक- 'समय साक्ष्य'
15 फालतू लाइन, देहरादून- 248001
• फोन- 0135-2658894
• मो.- 7579243444
• कीमत- 125/-
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संकलक हेम पंत ज्यूल यों बालगीत चार भागौं में एकबट्यै राखी-
१. लोरी
२. क्रीडागीत ( खेल करणै लिजी कई जाणी बालगीत)
३. पढ़ाई-लिखाई संबंधी बालगीत
४. पर्वगीत।
यो किताब में कुमाउनी, गढ़वाली, रँवाई और जोहारी लोक भाषाओं में 13 लोरी, 28 क्रीडागीत, 06 पढ़ाई-लिखाई संबंधी और त्यार-बारोंक मौक पर गाई जाणी वाल 07 बालगीतन कैं एकबट्यै राखौ, दगाड़ै 07 कुमाउनी आ्ण (पहेली) और 07 गढ़वाली में कुल 14 आ्ण लै शामिल कर रीं। संकलक पंत ज्यूल बालगीतोंक दगाड़ हिंदी भाषा में बालगीतक बा्र में जानकारी दिणकि लै कोशिश लै करि रै। य किताब में एक बालगीत साहित्यकार चारू चंद्र पांडे ज्यूक कुमाउनी में लेखी बालगीत लै शामिल छु। कुमाऊं और गढ़वाली समाज में सबन है सकर लोकप्रिय बालगीत 'घुघुती-बासूती' छु। ऊ बालगीतकै आधार पर किताबक लै नामकन करी जैरौ। य बालगीत कुमाउनी और गढ़वाली द्विए भाषान में य किताब में शामिल छु। कुमाउनी में गाई जाणी बालगीत य छु-
घुघूती-बासूती
आमा कां छ?
खेत में छ।
कि करन रैछ ?
घा काटन रैछ
घास को खालो ?
गोरू बाच्छी खाली
गोरू दूदो देलो
भव्वा उकैं पीलो।
उत्तराखंडाक बालगीत छुटपुट इथां- उथां पत्र पत्रिका और किताबन में छपी हुई तो मिलनी पर किताबक रूप में य शुरवाती प्रयासों में छु। हमरि यो मौखिक परंपरागत बिरासत कैं लिपिबद्ध करि बेर सँवारणक यो काम भौत भल छु। य तरफ काम करी जाणकि भौत जरवत छु।
आँखिरकार हम कै सकनू कि हेम पंत ज्यूल हमार यों बालगीत कैं लिपिबद्ध करि बेर सँवारणक उज्याण ध्यान दि बेर य हराणी बिरालत कैं सँवारणक भल काम करि रौ। निश्चितै य बुति हमार नानतिनोंक लिजी भौत कामक साबित हल, दगाड़ै जो लोग बालगीत पर काम करण चानी उनर लिजी लै मधतगार साबित होल, प्रेरणा दिनै रौल। यस आश करी जाण चैं।
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( ललित तुलेरा कुमाउनी में १६ सालकि उमर बै उरातार कलम चलूनई। कुमाउनी समीक्षा में ऊं युवा हस्ताक्षर छन । एक बिद्यार्थी दगाड़-दगाड़ै आपणि मातृभाषा कुमाउनी में गद्य व पद्य में में रचना लेखनी। कुमाउनी में छपणी पहरू में संपादक मंडल में कुमाउनीक सेवा में जुटी छन। हालै में कुमाउनी भाषाक 17 ज्वान रचनाकारोंकि जो य गड. बगि रै संजैत काब्य संकलनक संकलन और संपादन करि रौ। तुलेरा (मध्य हिमालय की एक जाति ) नामल आठ पीढ़ीक वंशावली लै तैयार करि रौ। कुमाउनी में kumaunibhasa.blogspot.com (कुमाउनी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति) ब्लौग और हिंदी में ohimal.blogspot.com (ओ हिमाल ! ) नामल ब्लौग चलूनी। )
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भौत भलि गैल समीक्षा 👌🙏🌸
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