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किताब समीक्षा : कुमाउनी शब्दों पर दो किताब - ललित तुलेरा

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  (कुमाउनी भाषाक पैंल शब्दकोश ' कुमाउनी हिंदी व्युत्पत्तिकोश ' (1983 ई.) छु, जकैं डॉ. केशव दत्त रुवाली ज्यूल  तैयार करौ। यैक बाद कुमाउनी मेंऐल तलक द्वी भाषी और बहुभाषी ना्न -ठुल करीब 10 है सकर शब्दकोशोंकि रचना हैगे। यां द्वी नई शब्दकोश सामणि ऐ रईं। इन द्वी शब्कोशनकि समीक्षा करनई युवा कुमाउनी समीक्षक - ललित तुलेरा, मो.- 7055574602 )               कु माउनी में शब्दकोशनकि गिणती बढ़नै जाणै और कुमाउनी शब्दन पर लेखी एक किताब ‘ कुमाउनी शब्द संपदा’ आजी सामणि ऐरौछ। य किताबाक लेखार डाॅ. नागेश कुमार शाह छन। य त्रिभाषी (कुमाउनी- हिंदी-अंग्रेजी) कोश छु। य कोशक आधार भाषा 'कुमाउनी' छु। यसै किसमक पैंल काम डाॅ. शेर सिंह बिष्ट द्वारा ‘हिंदी- कुमाउनी-अंग्रेजी शब्दकोश’ (1994 ई.) करी छु। उनूल 'हिंदी' कैं आधार भाषा बणै बेर कोश तैयार करौ। जो कुमाउनीक पैंल त्रिभाषी शब्दकोश छु। कुमाउनी शब्द संपदा ● लेखार-डाॅ. नागेश कुमार शाह ●पैंल संस्करण- 2021 ●कीमत-150/- रूपैं ●पेज-148 ●छापनेर- न्यू आस्था प्रकाशन  त्रिवेणी नगर-3, लखनऊ-226020 ●मो.- 9450077665 "...

कुमाउनी लेख : मातृभाषाओं में एक मातृभाषा कुमाउनी भी

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  ललित तुलेरा       गरूड़, जिला- बागेश्वर (उत्तराखंड)      मो.-7055574602 Lalit Tulera •••       दु नीयांक कदुकै बोलि-भाषा यास छी जनूमें कभै के लेखी-पढ़ी नि गोय और ऊं बिन ग्वाव-गुसैंक जस य दुनी बै हराते रईं। संसार में मातृभाषाओंक मरणाक कएक कारण छन, जनूमें लोगन में आपणि भाषाओंक लिजी मोह और चिताव नि हुण, उनरि महत्ता नि समझण, उनरि बुलाणियांकि संख्या कम हुण, भौगोलिक, आर्थिक व राजनीतिक समेत अणगिणत कारण छन। दुनियांक भाषाई बिरासत पर संकट ऊण देखि यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन) जसि अंतरराष्ट्रीय संगठनल घोर चिंता जतै और भाषाओं कैं बचूणक काम शुरू करौ। वीक परयासों में एक य लै छी कि जो भाषा हरै जाणी छन और उनार बुलाणियांकि संख्या कम छु तो उनरि रिकौडिंग करी जाओ और उनर बुलाणियां कैं आपणि हराणी भाषा परति चिताव करी जाओ।         संतोषकि बात य लै छु कि कुमाउनी लिजी हमार समाजाक कएक लोग हर उ उपाय अपणूनई जो यैक लिजी कारगर साबित है सकौ। चाहे उ साहित्य में अलग-अलग बिधाओं में किताब छपूण हो, पत्र-पत्र...

डॉ. प्रभा पंत ज्यूकि द्वि कुमाउनी किताबनकि समीक्षा

     ललित तुलेरा         गद्य- पद्यक सुवादल महकी रौ 'कुमाउनी साहित्य सुगंधिका' कु माउनी कैं ल्हिबेर पिछाड़ि करीब तीन दशकन बटी चिताव रई डाॅ. प्रभा पंत ज्यूकि कुमाउनी साहित्यकि किताब ‘ कुमाउनी साहित्य सुगंधिका’ कुमाउनी साहित्य संसारक सामणि छु। उनीस कविता और तेर गद्य रचनाओंल किताब द्वी खंड गद्य खंड और पद्य खंड में छु। दुसर खंडाक पन्न फरकूण पर हमूकैं उनार गद्य रचना मिलनी, जनूमें  ‘स्यैणि कर सकैं’, ‘पलायन या परगति’, ‘तू म्यर पुठ कन्या’ व ‘तू डाइ-डाई मैं पात-पात’ शीर्षकोंल उनार चार मौलिक लेख, संस्मरण विधा कैं ‘फाम’ नाम दी रौ, जमें ‘मेरि आ्म’ व ‘कुमाउनी ज्यू’ ;साहित्यकार शेर सिंह मेहता ‘कुमाउनी’ पर लेखीद्ध द्वी संस्मरण, बंशीधर पाठक ‘जिज्ञासु’, शेर सिंह बिष्ट ‘अनपढ़ ’ व चारू चंद्र पांडे ज्यूकि जीवनी कैं बड़ सीपल लेखि रौ। यैक अलावा उनूल कुमाउनी रचनाकारोंक टैम-टैम पर लेखी किताबनकि भूमिकाओं कैं लै ठौर दि रै। जमें ‘कहानि कुणक सीप और सहुर’ नामल नवीन जोशी ‘नित्यम’ ज्यूक ‘घुघुतकि मा्व’ कहानि संग्रहकि भूमिका, ‘द्वी आँखर’ जगदीश जोशी ज्यूक कविता संकलन ‘चांदि और सुनार...