कुमाउनी लेख : मातृभाषाओं में एक मातृभाषा कुमाउनी भी
ललित तुलेरा
गरूड़, जिला- बागेश्वर (उत्तराखंड)
मो.-7055574602
दुनीयांक कदुकै बोलि-भाषा यास छी जनूमें कभै के लेखी-पढ़ी नि गोय और ऊं बिन ग्वाव-गुसैंक जस य दुनी बै हराते रईं। संसार में मातृभाषाओंक मरणाक कएक कारण छन, जनूमें लोगन में आपणि भाषाओंक लिजी मोह और चिताव नि हुण, उनरि महत्ता नि समझण, उनरि बुलाणियांकि संख्या कम हुण, भौगोलिक, आर्थिक व राजनीतिक समेत अणगिणत कारण छन।
दुनियांक भाषाई बिरासत पर संकट ऊण देखि यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन) जसि अंतरराष्ट्रीय संगठनल घोर चिंता जतै और भाषाओं कैं बचूणक काम शुरू करौ। वीक परयासों में एक य लै छी कि जो भाषा हरै जाणी छन और उनार बुलाणियांकि संख्या कम छु तो उनरि रिकौडिंग करी जाओ और उनर बुलाणियां कैं आपणि हराणी भाषा परति चिताव करी जाओ।
संतोषकि बात य लै छु कि कुमाउनी लिजी हमार समाजाक कएक लोग हर उ उपाय अपणूनई जो यैक लिजी कारगर साबित है सकौ। चाहे उ साहित्य में अलग-अलग बिधाओं में किताब छपूण हो, पत्र-पत्रिका छपण हो, नई-नई गीत बणन लागी हो, इस्कूली पाठ्यक्रम में कुमाउनी कैं शामिल करूण हो, इंटरनेट में यैक साहित्य उपलब्ध करूण हो, शोसल मीडिया में कुमाउनी कैं लोकप्रिय बणून हो।
-ललित तुलेरा
‘यूनेस्को’ ल 17 नवंबर 1977 हुं घोषणा करै कि अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाई जाण चैं और भाषाई व सांस्कृतिक बिबिधता कैं बढ़ावा दिणै लिजी हर साल 21 फरवरी दिन छांटी गो। य घोषणाल बांग्लादेशक भाषाई आंदोलन दिवस कैं अंतरराष्ट्रीय स्वीकृति मिलै जो बांग्लादेश में 1952 ई. बै मनाई जाणौछी। यां भाषाई आंदोलन में शहीद हई छात्रोंकि याद में य दिन छांटी गोछी। संयुक्त राष्ट्र आम सभाल साल 2008 कैं अंतरराष्ट्रीय भाषा वर्ष घोषित कर बेर मातृभाषा दिवसक महत्व कैं फिर वकत दे। अलीबेर 2022 क अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवसकि थीम ‘बहुभाषी शिक्षाक लिजी प्रौद्योगिकीक उपयोगः चुनौती और अवसर’ धरी छु। भाषाओंक पैरवी लिजी हमरि देशकि नई शिक्षा नीति में लै य बात पर जोर दिई जै रौ, जो कि भाषाओं लिजी भौत सार्थक लाप छु।
2011 कि जनगणना मुताबिक हमर उत्तराखंड में हिंदी 43,73951, गढ़वाली 23,22406 और कुमाउनी 20,11286 लोगनकि मातृभाषा छु। हमरि कुमाउनी भाषा राज्यकि तिसरि सबन है सकर बुलाई जाणी भाषा छु। जनगणना 2011 में आपणि मातृभाषा कुमाउनी बतूणी 20 लाख है सकर मैंस छन। वास्तविक संख्या यै है लै सकर है सकें किलैकी भौत सा लोग मातृभाषा कुमाउनी जागतिर हिंदी बतूनी। कुमाउनी लिजी हमर समाज में जो बेरूखापन देखीण में ऊंछ वीक मध्यनजर य संख्या क्वे मायने नि धरनि किलैकी कुमाउनी पर संकट छु। क्वे लै संकटग्रस्त भाषा कैं बुलाणियां संख्या सैकड़ में हो या लाख में उनूमें संकट बराबरै हुंछ।
यूनेस्कोेक ‘एटलस आॅफ थे वर्लड्स लैंग्वेज इन डेंजर’ ल चेतै राखौ कि कुमाउनी खत्र में छु। आज कुमाउनी पर खत्र कदुकै रूपों में छन। आपणि मातृभाषा दुदबोलि कुमाउनी कैं ज्यून धरण, सजूण, सँवारण, पावण और वीक बिकास में हम सब जदुक लै धन-मन, रथ-बथ कर सकनू, करणकि जरवत छु। संतोषकि बात य लै छु कि कुमाउनी लिजी हमार समाजाक कएक लोग हर उ उपाय अपणूनई जो यैक लिजी कारगर साबित है सकौ। चाहे उ साहित्य में अलग-अलग बिधाओं में किताब छपूण हो, पत्र-पत्रिका छपण हो, नई-नई गीत बणन लागी हो, इस्कूली पाठ्यक्रम में कुमाउनी कैं शामिल करूण हो, इंटरनेट में यैक साहित्य उपलब्ध करूण हो, शोसल मीडिया में कुमाउनी कैं लोकप्रिय बणून हो। यास और लै कदुक नमानाक काम छन, जै तरफ ध्यान दिई जाणकि जरवत छु, उ छु आपणि मातृभाषा कुमाउनी कैं सकर है सकर ब्यौहार में ल्यूण, बोल-चाल में ल्यूण, दिनचर्या में शामिल करूण, उमें पढण-लिखणक माहौल पैद करण, उकैं रूजगार दगै जोड़न। अगर य नि होल तो सब करी-धरी गाड़ बग जाल।
कुमाउनी भाषा हमरि पछयाण छ, आपणि पछयाण कैं बचूनै लिजी हमूकैं आज समाज में आपणि दुदबोलि कुमाउनी कैं जदुक लोकप्रिय बणूनकि जरवत छु, उदुकै यैक बिकास करणकि जरवत लै छु। कुमाउनी लिजी हर उ उपाय करणकि जरवत छु जो यकैं सजूण, सँवारण व पहरूण में कारगर साबित है सकौ।
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(य लेख कैं 'पहरू' फरवरी २०२२ अंक में संपादकीय रूप में लै छापि रौ)
उपयोगी लेख
जवाब देंहटाएंभौत भलि बात---------कभैं न कभैं त आलौ उ दिन य दुनी में ---------🌄
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