मोहन टेलर, जो एक जमाने में आठ ग्राम सभाओं के कपड़े सिलते थे

         

ललित तुलेरा
tulera.lalit@gmail.com
मो.-7055574602

      गर आपकी रूचि का काम ही आपके आय का साधन बन जाए तो वह संतोष देता है।

     मोहन राम को लोग 'मोहन टेलर' के नाम से जानते हैं। 72 वर्ष के मोहन राम पिछले लगभग 52 सालों से कपड़े सिलते हैं। वस्त्र सिलने की इसी हुनर से वे अपने परिवार का भरण-पोषण करते आए हैं। 

                                  (डाकघट) 
      बागेश्वर जिले के गरूड़ ब्लॉक से करीब 25 किलोमीटर दूर स्थित लाहुर घाटी में एक छोटा व्यवसायिक केन्द्र है- डाकघट। यहां से कुछ दूरी पर जखेड़ा गांव का एक तोक है-'मड़की'। मोहन राम का जन्म यहीं हुआ था। उन्होंने प्राथमिक शिक्षा अपने गांव जखेड़ा से ही प्राप्त की। गरीबी और स्कूल दूर होने कारण कक्षा सातवीं तक ही पढ़ाई कर पाए। अपने करियर के लिए उन्होंने सिलाई को चुना। 
 
● आठ ग्राम सभाओं के विभिन्न गॉंवों के लोगों के कपड़े सिलते थे-
      डाकघट सन् 1970 के दौर में एक व्यवसायिक केन्द्र के रूप में स्थापित हो चुका था। घाटी के लोगों के लिए जरूरत की हर सामग्री यहां मिलने लग गई थी। त्योहारों के समय में यहां खूब रौनक रहती थी। यहां गोपाल राम, जीत राम (जखेड़ा), गोविंद राम ने कपड़े सिलने का व्यवसाय शुरू कर दिया था। उन्हीं दर्जीयों के साथ मोहन टेलर भी युवा अवस्था से कपड़े सिलने के व्यवसाय से जुड़ गए।

       ( मोहन राम टेलर अपनी दुकान में कपड़े सिलते हुए)

        सिमगढ़ी, लमचूला, सिरानी, सलखन्यारी, पौंसारी, मोपटा, सुराग, लमचूला, जखेड़ा, सलानी, गनीगांव, जखेड़ा आदि गॉंवों के लोगों के कपड़े सिलते थे। तब पेंट-कमीज की कीमत 100 रूपये के आस-पास हुआ करती थी। मोहन राम 20-22 साल की उम्र से सिलाई के उद्यम से जुड़ गए थे। वे पुरूष-स्त्री व बच्चों के कपड़े सिलने में पारंगत हैं। उन्होंने इस व्यवसाय को आजीवन अपनाया है। उनके दौर में कुछ दर्जी कपड़े सिलने के बदले अनाज लेते थे। ये दर्जी स्थानीय कुमाउनी भाषा में 'खई' कहलाते थे।

ऐसे हुआ डाकघट एक व्यवसायिक केन्द्र के रूप में स्थापित-
           डाकघट में पहली दुकान की शुरूआत लगभग सन् 1950-55 से होना शुरू हो गया था। हयात राम डाकघट से ही कुछ दूरी पर लुकीट नामक स्थान पर उसके रिश्तेदार रहता और मवेशियों की देखभाल करता था। चौरसौं (वज्यूला) का मूल निवासी हयात राम ने डाकघट में गुड़, नमक, तंबाकू आदि सामान की एक छोटी दुकान स्थापित कर दी थी।

                        (डाकघट की एक तस्वीर) 

       लाहुर घाटी की आधी आबादी इसी राह से गुजरती थी। धीरे-धीरे यहां कुछ अन्य दुकानदार मोहन सिंह, बलवंत सिंह, आलम सिंह, पदमा दत्त आदि ने भी जरूरत के सामानों की दुकानें शुरू कर दी और डाकघट एक व्यवसायिक केन्द्र के रूप में स्थापित हो गया। वर्तमान में यह सड़क से जुड गया है।

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