हिंदी कविताएं : ललित तुलेरा (भाग-२)


पिताजी का लीसे का गमला

हाथ की लकीरें तो

हो गई हैं ध्वस्त

ऐसिड और लीसे से,

पर हाथ की लकीरें  

चीड़ के पेड़ों पर 

बना दिए हैं पिताजी ने। 


उन लकीरें से

निकलता है लीसा,

लकीरों से होकर लीसा

कील में टंगे गमले में

पहुंचता है,

जैसे पिताजी पहुंचते हैं

घर से तैयार होकर 

*लिसुवा की ड्रैस में रोज

अपने लीसे के गमले के पास।


लीसे का गमला भरता है

कई दिनों बाद

पर उससे पहले

उसे बचाए रखना होगा

राहगीरों से, जंगल के जानवरों से

आंधी से और आग से।


कई बार 

गर्मीयों में आग पहुंच जाती है

घर के सामने पहाड़ी पर

चीड़ के जंगल में

पिताजी के लीसा कंपार्टमेंट में

तब गमले के जल जाने के डर से

रात को नींद नहीं आ पाती


लीसे के गमले का बचना

जरूरी है कनस्तर को भरने के लिए

लीसा भरा कनस्तर का बचना जरूरी है 

परिवार के लिए


लीसे का गमला 

टंगा है आज भी चीड़ के पेड़ पर 

लकीरों से लीसा भर रहा है 

पिताजी के लीसे के गमले में।


*लिसुवा- मूल कुमाउनी शब्द 'लिसू' से बना है। जिसका मतलब है- लिसा निकालने वाला वाला श्रमिक) 

●●●


छत टपकती है चातुर्मास में

मेरे घर की छत 

टपकती है चतुर्मास में,

दिनों-दिन टपकती है

रात-रात भर टपकती है।


रसोई के बर्तन 

इजा (मां) पहुंचा देती है

दुमंजिले कमरे में,

इजा के हाथों 

लाल मिट्टी से लिपे फर्श में

गड्डे दिखते हैं गहरे कहीं।


हर बूंद के नीचे 

पिताजी लगाते हैं बर्तन 

बजता है कहीं 

पारात, भगौना, कहीं डिब्बा,

घर बन जाता है

संगीतशाला,

रात में यह संगीत

सोने नहीं देता,

भीगा बिस्तर 

चैन कहां देता है।


कई दिनों बाद 

धूप दिखती है 

बिछौना सूखता है

आंगन के सामने 

दो खंबों के बीच लिटाए 

एक लंबे खम्बे में।


घर के अंदर से संकेत देते हैं

लंबे डंडे से 

पिताजी हिलाते हैं

पाखे में जाकर पाथरों को,

पर टपकना बंद नहीं होता

बूंद स्थान बदल देती है।


छत की बल्लियां, दादर

सड़ रहे हैं चातुर्मासी पानी से

मेरे घर की छत टपकती आ रही है

कई चातुर्मासों से।


●●●



इजा की दराती

*इजा जब काटती है 

कड़ी धूप में अपने खेतों में 

लहलहाती गेहूं, धान की फसलें

बजते हैं दराती के घुंघरू।


कुमाउनी गीत गाते हुए

इजा काटती है ऊंचे पहाड़ी पर 

भैंस-गाय के लिए हरी घास,

जानवरों का बिछौना

समेटती है जंगल में।


इजा का कारोबार 

टिका है दराती से,

सालों साल से 

साल भर चाहिए दराती

और हमेशा चाहिए धारदार।


दराती की धार 

तेज करने को 

पत्थर से घिसकर 

धार तेज करती है।


इजा जब बच्ची थी

तब से दराती चलाती है

कलम की जगह

दराती पकड़ी थी

हरेक पहाड़ी लड़की की तरह।

* इजा- मूल कुमाउनी शब्द 'इज' से बना है। 'मां' के लिए प्रयुक्त कुमाउनी शब्द। 

●●●


स्वीकारो 

स्वीकारो!

स्वीकारो!! 

इस दुनिया को स्वीकारो।


स्वीकारो!

इस धरती को स्वीकारो।


स्वीकारो

इस जीवन को स्वीकारो।


स्वीकारो!

सारा सच स्वीकारो।


ताकि गढ़ सको

एक स्वीकारणीय कल। 


ताकि पा सको

दुनिया को,

धरती को

जीवन को

सच को। 

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( कविताओं पर अपनी प्रतिक्रिया tulera.lalit@gmail.com पर भेज सकते हैं।) 

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