कुमाउनी भाषाक एकरूपता
■ ललित तुलेरा
कुमाउनी समेत हौर पहाड़ी भाषाओंक लेखन में एकरूपता आजी नि ऐ पाइ। कुमाउनी भाषाक पैंल अभिलेखीय सबूत हमर पास 989 ई. में लेखी एक तामक पत्तल छु, जकैं 'ताम्रपत्र' कूनी। य ताम्रपत्र हमुकैं 'देवनागरी' लिपि में खोदी मिलौ। कुमाउनीक आपण लोक साहित्य शुरवातै बै चली आई होलि पर वीक हर इला्क में आपण रूप छु, जस रूप कुमाउनी मौलिक साहित्यक छु। कुमाउनी में मौलिक साहित्य रचणकि जो शुरवात 1800 ई. बाद भै उमें एकरूपता नि दिखाई दिनि, यैक कारण छु कुमाउनी भाषाक एकरूपता नि है पाण। किलैकी कुमाउनी कैं बिबिधताक हिसाबल पूर्वी और पश्चिमी कुमाउनी में बांटी जैरौ। य बँटवार कुमाउनीक क्षेत्रवार अलग-अलग उच्चारण रूपक हिसाल करि रौ।
कुमाउनी में आज तलक जदुक लै पत्र-पत्रिका छपीं और छपनई उनरि भाषाई रूप अलग-अलग छु। य बिबिधता कैं दूर करणै लिजी कुमाउनी मानकीकरण पर बिद्वान व्याकरणिक टैम-टैम पर सम्मेलनों में बातचीत करनै रई छन, पत्र-पत्रिका में लेख लेखि बेर, किताब छपै बेर प्रयास करते आई छन। पर क्वे ठुल फरक य तरफ देखण है नि मिल रय।
हौर भाषाई चारि बिबिधता कुमाउनी लिजी लै बड़ी तागत छु पर लेखन में एकरूपता लिजी प्रयास करण आ्ब जरूरी चिताईनौछ। जादातर बिद्वान कुनी कि अल्माड़कि 'खसपर्जिया' रूप कैं मानक बणै बेर मानक तई करूण चैनी, तर्क य छु कि किलकी य कुमाऊंक केन्द्र में लै छु और य बोलि में जादे काम हैरौ। जै लै छु, आ्ब कुमाउनीक बिकासै लिजी मानक रूप पर लै काम हुणै चैं, बड़ी य लै हुंछी कि पहाड़ी भाषाओं बिकासै लिजी क्वे सरकारि केन्द्रीय संस्थान हुन जो हिमालय क्षेत्रक पहाड़ी भाषाओं पर काम करन। ●●●
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