संदेश

फ़रवरी, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

उत्तराखंड के परंपरागत बालगीतों की चर्चित किताब का नाम है : घुघुति बासूति

चित्र
                      ललित तुलेरा बागेश्वर, (उत्तराखंड)  ( ' घुघूति बासूति' इन दिनों बच्चों के बीच ही नहीं वरन आम पहाड़ी के बीच भी खासा लोकप्रिय हुई है। कुछ साल पहले जब यह डीजिटल रूप में प्रस्तुत थी तब भी काफी सराही और पसंद की गई थी। यहां ' घुघुति बासूति ' किताब की समीक्षा की गई है। इस किताब के संकलक  हेम पंत , पिथौरागढ़ हैं। समीक्षक  ललित तुलेरा  हैं। )         आ पनी भाषा, संस्कृति और पहाड़ से गहरा जुड़ाव रखने व पहाड़ी सरोकारों से गहरे जुड़े  हेम पंत  द्वारा उत्तराखंड के बालगीतों को संकलित करके किताब रूप में छापा गया है। इस पुस्तक का  नाम उन्होंने ' घुघूति बासूति'   रखा है। वही बालगीत जो बच्चों को रचनात्मकता की ओर खींचते हैं, बच्चों का व्यक्तित्व निर्माण, चरित्र निर्माण और अपने परिवेश, संस्कार और समाज को जानने में मददगार होते हैं।         यह किताब उत्तराखंड के  कुमाउनी व गढ़वाली समाज में पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक रूप से प्रचलित बालगीतों क...

उत्तराखंडी समाज में बरसों बै चली आई बालगीतोंकि बिरासतकि किताब : घुघुति बासूति

चित्र
ललित तुलेरा बागेश्वर, (उत्तराखंड)  ( यां ' घुघुति बासुति ' किताबकि कुमाउनी भाषा में समीक्षा करी जैरौ। य किताबक संकलक हेम पंत , पिथौरागढ़ छन। समीक्षक ललित तुलेरा छन। )        आ पणि भाषा, संस्कृति और स्वर्ग जस पहाड़ दगै गैल जुड़ाव धरणी और प्रेम करणी हेम पंत द्वारा उत्तराखंडाक बालगीतन कैं एकबट्यै बेर किताब रूप में छापी जैरौ। य किताबक नाम उनूल ' घुघूति बासूति' धरि रौ। उईं बाल गीत जो नानतिनां कैं रचनात्मकता तरफ खींचनी, नानतिनोंक व्यक्तित्व निर्माण, चरित्र निर्माण और आपण परिवेश, संस्कार और समाज कैं जाणन में मधतगार हुनी।        य किताब उत्तराखंडाक कुमाउनी व गढ़वाली समाज में पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक रूपल चली आई बालगीतोंक छु। बालगीत कुमाउनी, गढ़वाली, जोहारी, रँवाई लोकभाषाओं में छन। कुल 55 बालगीत इमें एकबट्याई छन। जनूमें 24 गढ़वाली बालगीत, 30 कुमाउनी बालगीत, रँवाई बोलीक 2 बालगीत,   जोहारी बोलिक 03 बालगीत और  एक बालगीत हिंदी और कुमाउनी में लै  शामिल कर राखीं। कुमाउनी समाज में हर्याव, दुतिया समेत हौर त्यारोंक मौक पर सयाणों द्व...

कुमाउनी कविताकि गड. और लेखनीकि लहर

डाॅ. पवनेश ठकुराठी, अल्मोड़ा (उत्तराखंड) (  'जो य गड. बगि रै' कुमाउनी सामूहिक कविता संकलन की भूमिका)          हि यकि मुक्ति लिजी मनखी जो शब्दोंकि साधना करूं उई कबिता छ। कबिता चित्त कैं आनंदकि अनुभूति करूछि और यें में ‘सत्यं शिवं सुंदरम’ कि भावना मौजूद रूछि। कुमाउनी भाषा में लिखित काब्यकि शुरूवात 1800 ई. बाद बै मानी जांछि और लोकरत्न पंत ‘गुमानी’ कुमाउनीक पैंल कबि कई जानी। गुमानी पंतक बाद श्रीकृष्ण पांडे, गौरीदत्त्त पांडे ‘गौर्दा’, श्यामाचरण दत्त पंत, चंद्रलाल वर्मा ‘चैधरी’, चिंतामणि पालीवाल, चारूचंद्र पांडे, शेर सिंह बिष्ट ‘अनपढ़’, बंशीधर पाठक ‘जिज्ञासु’, गिरीश तिवाड़ी ‘गिर्दा’, मथुरादत्त मठपाल, एम.डी. अंडोला, हीरा सिंह राणा, महेन्द्र मटियानी आदि अनेक किबियोंल कुमाउनी कबिता कैं समृद्ध करौ। आजक टैम पर कुमाउनी में कबिता एक यसि बिधा छू जैमें सबहैं जादे काम हुनौ। आज तमाम मौलिक और संपादित कबिता संग्रह सामणि उनईं। ‘जो य गड. बागि रै’ कबिता संकलनक अनुशीलन ये नजरियल जरूरी है जां कि यो एक नौजवान कुमाउनी रचनाकारोंक संकलन छ और खास बात यैक संपादन लै एक नौजवान रचनाक...

कुमाउनी भाषा में जापान की दो लोक कथाएं

कुमाउनी अनुवाद-  डॉ.देव सिंह पोखरिया अल्मोड़ा (उत्तराखंड)